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________________ ७६४ ] अध्याय तेरहवां । द्वारा भारतमें स्त्रीशिक्षाकी जागृति फैलना आप ही की अंतरंग इच्छाका प्रभाव था। (७) जीवदया प्रचार व मांसाहार त्याग कराने में पूर्ण खटपट करना । इसके लिये आप पुस्तकें बांटते, इनाम देते, दया प्रचारक संस्थाओंको मदद देते रहते थे। आपने बम्बईमें दो वर्ष तक इस बातकी पूरी २ खटपट की कि जो भैंसे व गाएं दूध देना बन्द करें व फिर दूध देने लायक जब तक न हों तब तक उनको पालनेका एक कारखाना खोलना और उनको कसाइयों के हाथ विक्री होनेसे बचाना । आपने जो स्कीम बनाई थी वह व्यापारके दंग पर थी कि जिन दामोंमें ग्वाले लोग पशुओंको कसाइयोंके हाथ वेचते हैं उन दामों में खरीद लेना व गाभिन न होनेपर अच्छे दामों में बेचना । इससे नफा भी दिखलाया। इसकी कार्रवाई रेवाशंकर जगजीवन आदिके सम्बंधमें कुछ दिन चली भी, पर सच्चा व ईमानदार कार्यकर्ताके विना यह काम नहीं हो सका । (८) जैन ग्रन्थोंको मुद्रित कराना । आपने अपने पुस्तकालयके साथ २ जैन नियम पोथी, नर्क दुःख चित्रादर्श, छ:ढाला, दिवालीपूजन, न्यायदीपिका, आदि ग्रन्थ मुद्रित किये थे और उनका बहुत अल्प मूल्य में प्रचार किया था। आपके विचारे हुए काम अपूर्ण व अधूरे जो रह गए हैं उनमें रंगूनमें मांसरहित भोजनालय स्थापित होना, तथा इंग्लैंडमें जैन बोर्डिंगका होना मुख्य है। और सर्वसे बड़ा काम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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