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________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ७६५ जिसको आप कराना चाहते थे वह जयववल, महाघवल ग्रंथोंका प्रकाश होना है । यद्यपि आपके व सेठ हीराचन्दजीके उद्योगसे इनकी बालबोध लिपिये हो गई हैं पर इनका प्रचार नहीं हुआ था । एक यह काम बड़ा भारी अधूरा रह गया है । इसके सिवाय आप यह भी चाहते थे कि दिगम्बर जैन धर्मका विद्वत्ता पूर्ण उपदेश सारे भारत में व विदेशों में भी हो । यह कार्य भी होना बाकी है । जिन २ कार्यों से आपको बहुत प्रेम था उनको सहायता देने के लिये आपने अपने जुबली बागका दान कर दिया था और उसकी आमदको नीचे प्रमाण खर्च किये जानेके लिये नियम बांध दिए था । जुबीली बागका दान । ११००) मासिक किराये की आमदनी से ५०) मासिक मकान की रक्षा के लिये बचाकर शेष में से MODES (१) १४) सैकड़ा हीराचन्द गुमानजीकी सर्व संस्थाओंके निरीक्षण के लिये एक योग्य सुपरिन्टेन्डेन्ट नियत करने में ! (२) ७) सैकड़ा - बम्बई प्रान्तिक समाके परीक्षालय में । 92 (३) ७) बम्बई दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी बम्बई के दफ्तर खर्चमें । (४) १२) सैकड़ा दिगम्बर जैन धर्मके उपदेशके प्रचार में । 25 (५.) ५०) छात्रवृत्ति देने में, जिसमें से ३३ ) सैकड़ा वागड़ प्रान्तवालोंके लिये, ३०) सैकड़ा मध्य प्रान्तवालों के लिये और ३७) सैकड़ा सर्व प्रकार के छात्रोंके लिये । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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