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________________ दानवरिका स्वर्गवास। . [७६३ गृही, पावापुर, कुन्डलपुर, गुनावा, श्री शिखरजी तथा मन्दारगिरिका उद्धार हुआ। सोनागिरजीके उद्धारके लिये आपने बहुत परिश्रम उठाया । एक मुनीम वहांपर रक्खा जो अब भी मौजूद है पर इसका सुधार आप अपने जीवन में पूरा न कर सके। (४) धर्मोपदेशका प्रचार करानेके लिये व जाति सुधारके आन्दोलनके लिये सभाओं व कमेटीयोंके स्थापित करानेमें उद्योग करना । इसीलिये आप बहुतसी सभाओंके सभापति और कोषाध्यक्ष थे। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा, बम्बई दि० जैन प्रान्तिक सभा, व द० महाराष्ट्र जैन सभाके सदा तक सभापति रहकर बहुत कुछ उन्नतिका मार्ग शोधा । (५) कुरीतिनिवारणमें पूर्ण चेष्टित होना-बुहुतसा बालविवाह का रुकना आपके उपदेशसे हुआ। हुमड़ जातिके सुधारका आपको बहुत बड़ा ध्यान था । आप यह भी चाहते थे कि दुमड़ जाति के दसा और वीसा दोनों मिल जावे क्योंकि इनमें कोई फर्क नहीं है दोनों ही श्रीजिनेन्द्र देवकी पूजा प्रक्षाल करते व साथ २ खाते पीते हैं और दोनोंके गोत्र एकसे हैं परन्तु इसकी सफलता नहीं हुई । आप इस बातके भी पक्षपाती थे कि वे सर्व दिगम्बर जातियां जो साथ खा पी सकती हैं परस्पर सम्बन्ध भी कर सकती हैं। (६) स्त्रीशिक्षाके प्रचारमें पूर्ण उत्साही होना । मगनबाईजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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