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गुजरात देशके सूरत शहर का दिग्दर्शन। [ ४५
चौवीसी। " सं० १५४४ वर्षे वैशाख सुदी ३ सोमे श्रीमूलसंघे भ० श्रीभुवनकीर्तिस्त्तपट्टे भ० श्रीज्ञानभूषणगुरूपदेशात् हंबडशाहरामाभार्या कर्मी सु० कर्णाभार्या हासी सुत मना एते नित्यं प्रणम्य श्रीमहावीर जिनम् ।'
पार्श्वनाथकी धातुकी छोटी प्रतिमा ।
"सं० १४९९ वर्षे वैशा वाद ५ गुरुवारे श्रीकाष्ठासंघगणे हुंबडवांशायं जगपालभाः सांति त्रि । सुत नरपालेन श्रीपार्श्वनाथविवं करारि....."
सम्यक्ज्ञानका यंत्र ।। __ "सं० १३७८ भाद्र० सुदी १२ साधु चादावोदा प्रणमति नित्यम् ।"
तीसरा दि० जैन मंदिर गोपीपुरामें हैं। यहांपर भी बहुत प्रतिबिम्ब हैं अधिकतर काष्टासंघकी गद्दीके भट्टारकोंके द्वारा प्रतिष्ठित हैं। इस मंदिरमें संस्कृत ग्रंथोंका प्राचीन शास्त्र भंडार है, परंतु बहुत ही अव्यवस्थित स्थितिमें पड़ा है। बम्बईके सेठ डाह्याभाई प्रेमचंदका प्रबंध है। खेद है कि वे इनकी सम्हाल नहीं कराते। इस भंडारमें संस्कृत-प्राकृतके अपूर्व २ हजार डेढ़ हजार ग्रंथ हैं।
यहांपर एक पद्मावती देवीका प्रतिबिम्ब है उसपर संवत् १६९४ जेठ सुदी १० है । प्रतिष्ठाकारक भट्टारक काष्ठासंघी लक्ष्मीसेन हैं। इसकी प्रतिष्ठा गुर्जरदेश सरत बंदर नरसिंहपुरा ज्ञातीय पंचलालगोत्रे शाह रामजी भार्या फवाई तयोः सुत कल्याणजी भार्या गौरीने की।
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