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________________ ४४ ] अध्याय दूसरा । दि गुरूपदेशात् गाधार वास्तव्य हुंबड ज्ञातीय समस्त श्री संघेन कारापित मेरुशिखरा कल्याण भूयात् " मेरुके नीचे चारों कानों पर चारों दिशाओंमें चार मुनियोंकी मूर्तियां हैं जो जाप करते हुए दाहिना हाथ छातीपर और बांया हाथपर रख हुए हैं । चारों मुनिओंके नाम । १ मुनिश्री कल्याणनंदी मूर्तिः २ भ० श्रीपद्मनंदी देवस्य मूर्तिरियम् ३ मंडलाचार्य श्रीदेवेंद्रकीर्तिः... ४ ........ नंदी मूर्तिः ...... पंचपरमेष्टीकी धातुकी प्रतिमा । “ सं० १५१३ वर्षे वैशाख सुदी १० बुधे श्रीमूलसंघे आचार्य श्रीविद्यानंद गुरूपदेशात हुवड ज्ञातीय दो० डुंगर भा० सोनी देवलदेसुतदोशी शंखा भार्या वासुदिवी०का भार्या मटक्का तेनेदं श्री जिन विम्बं कारिता । " मूर्तिः मूलनायक श्री आदिनाथस्वामीकी प्रतिमा मूलसंघे सं० १३७६ की है। विशेष लेख पढ़ा नहीं जाता । Jain Education International सम्यक ज्ञानका यंत्र । " सं० १६८५ वर्षे माघ सुदी ५ श्रीमूलसंघे कुंदकुंदाचार्यन्वये श्रीवादीचन्द्रस्तत्पट्टे श्रीमही चंद्रोपदेशात् सिंघपुरावंशे संघवी वल्लभजी सं० हीरजी ज्ञानं प्रणमति ।" For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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