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गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ ४३ प्रतिष्ठा वैसाख सुदी १२ संबत् १८९९ को भाणा पंडितके द्वारा की गई थी जो यहीं रहते थे और यंत्र मंत्रमें बहुत प्रवीण थे । उस समयकी प्रतिष्ठित पद्मावतीकी मूर्तिपर नीचे प्रकार लेख है।
पद्मावतीकी पाषाणकी प्रतिमा । "सं० १८९९ वैशाख सुद १२ गुरुवार श्रीमुलसंघे सरस्वतीगछ बलातकारगण कुंदकुंदाचार्य भट्टारक श्रीविद्यानदितत्पट्टे भ श्रीदेवेन्द्रकीतिस्तत्पेटे भट्टारक श्रीविद्याभूषणजीस्तत्पट्टे भ० श्री धर्मचंद्रस्तरशुरु भ्राता पंडित भाणचंद उपदेशात् सा० वेणिलाल केसुरदास तत्सुता बाई इछाकोर नीत्यं प्रणमति ।"
पद्मावती ( पाषाणकी खड्गासन) "सं० १५४४ वर्षे वैशाख शुदी ३ सोमे ॥ श्री मूलसंधे॥ सरस्वतीगछे । बलात्कारगणे ॥ भट्टारक श्रीविद्यानंदीदेवाः तत्प? भट्टारक श्रीमल्लीभूषण ॥ श्रीस्तंभस्तीर्थे । हुंबड ज्ञातये । श्रेष्टी चांपा भार्या रूपिणि तत्पुत्री श्रीआर्जिका आर्जिका रत्न सिरीक्षुल्लिका जिनमती श्रीविद्यानंदी दीक्षिता आर्जिका कल्याण सिरीतत्वल्ली अग्रोतका ज्ञातोसाह देवा भार्या नारिंगदे ॥ पुत्री जिनमती नस्स ही कारापिता प्रणमति श्रेयार्थम् ।"
पंचमेरुकी धातुकी बड़ी प्रतिमा।
"सं० १५१३ वर्षे वैशाख सुदी १० बुधे श्रीमूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगछे । भ० श्रीप्रभाचन्द्रदेवाःतत्पट्टे भ । श्रीपद्मनंदीतसिष्य श्रीदेवेंद्रकीर्तिदीक्षिताचार्य श्री....विद्यानं
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