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अध्याय दूसरा ।
स्त० भ० देवेन्द्रकीर्तिदेवास्त० भ०॥ श्रीविद्यानन्दिदेवास्त० भ० श्रीमल्लीभूषणास्त० भ० श्रीलक्ष्मीचन्द्रस्त० भ० श्रीवीरचन्द्रास्त० भ० श्रीज्ञानभूषणास्त० भ० श्रीप्रभाचन्द्रास्त० भ० श्रीवा दीचन्द्रदेवास्त० भ० श्रीमहीचन्द्रोपदेशात् हंबड़जातीयः वीर्डलवास्तव्यः मातर गोत्रे सं० श्रीवर्द्धमानभार्या संवनादे तयोः
पुत्रः स० कुंअरजीत । ० संकोटमदे तयोः पुत्रः सं० श्रीधर्मदासभार्या सं घनादे पुत्री वेभबाई चन्द्रप्रभं प्रणमति ।"
चंद्रप्रभुकी बाई ओरकी बड़ी प्रतिमाका लेख ।
"संवत् १६७९ वर्षे वैशाख वदी ५ गुरौ श्रीमूलसंघे भारती गच्छे श्रीकुंदकुंदाचार्यान्वय भट्टारक श्रीपद्मनंदीदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीदेवेन्द्रकीर्तिदेवास्तत्प? भ० श्रीविद्यानंदीदेवास्तत्प? भ. श्रीमल्लिभूषणदेवास्तत्प? भ० श्रीलक्ष्मीचंद्रदेवास्तपट्टे भ० श्रीवीरचंद्रदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीशानभूषणदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीप्रभाचन्द्रदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीवादीचंद्रदेवास्तत्पटे भट्टारक श्रीमहीचंद्रोपदेशात् सं० श्रीधर्मदासः श्रीवासुपूज्यं प्रणमति, ___ चन्द्रप्रभकी दाई ओर भी एक आदिनाथ स्वामीकी उतनी ही विशाल प्रतिमा है, लेकिन उसपर कोई लेख नहीं है । यहांके वृद्ध पुरुषोंके कथनके आधारपर तलाश करनेसे ज्ञात हुआ कि ये तीनों प्रतिमाएं पहिले नानावट बड़े चौटेकेके भौरेमें थीं। वहांपर अब सिर्फ घेलामाई मंछालाल दसा हुंबडका एक घर है। उनके आधिन वह भौरा अभी है और वहां तीन प्रतिमाओंके आसन भी मौजूद हैं।
यह बड़ा मंदिर संवत् १८९३ में भस्म हो गया था। उस वक्त अग्निकांडसे आधा शहर जल गया था पर प्रतिमाएं सुरक्षित रही थीं। सं० १८९५से १८९८ तकमें फिर तय्यार होकर इसकी
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