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अध्याय दसवां । हीराचन्द नेमचंद, सेठ माणिकचंद मोतीचंद आलंद और मि० लट्टे एम. ए. सहित ठीक समयपर गाड़ीसे उतरे । उसी समय स्वागतार्थ निम्न लिखित ऐड्रेस पढ़के सुनाया गया
नकल स्वागतपत्र । श्रीमान् सद्धर्मप्रचारक, सत्तीर्थसमुद्धारक, जातिहितसाधक, जिनवा
लकधर्मधारकानेकछात्रागारकारक, विद्योन्नतिप्रिय, दानवीर मुम्बानगर निवासि श्रेष्ठिवर्य माणकचन्दजी साहब सभापति
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महा सभाकी सेवामें भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाकी ओरसे स्वागत
विषयक अभिनन्दनपत्र ।
( पद्धरि छन्द । ) श्री मण्डित निर्मलगुण विशाल । शुभ आनन शशि सोहे रसाल ॥ निज अखिल अंशुसे हम अताप | कर दूर प्रगट कीनो प्रताप ॥१॥ पद कमल धरत भू भइ पवित्र । मानों बहु शोभा लइ विचित्र ।। हम जैनिनके वड़ भाग्य आज । श्रीमान पधारे गुण समाज ॥२॥ मुख चन्द्र बिलोकत हृदय दुःख । विनशौ, शुभ पायो बहुत सुक्ख ।। विद्यावर्द्धक वृष जैनपाल । आओ स्वागत बर करें हाल ॥३॥ गणजैन करें वाणि विकाश । ताकर जिन वृषको हो प्रकाश ॥ जय जय जय हो श्रीमान धीर । व्यापि चहुं दिशि कीरति गंभीर ||४|| हैं जैन जातिमें दानवीर । वृषयाचक जनकी हरें पीर ॥
आपहिंसे भई इह जाति आज । शोभित, इससे ये सरे काज ॥५॥ विद्या विन वृष दुःखित निहार । श्रीमान भये अतिही उदार ॥ जहँ तहँ विद्याके धाम खोल । परचारी जिनवाणी अमोल ॥६॥ श्री तीर्थराजके अप्रबन्ध । सब दूर किये कर सुप्रबन्ध ॥ यह आपहिको अखिल प्रसाद । सुख दियो जैनिनको अगाध ॥७॥
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