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महती जातिसेवा प्रथम भाग | चिरकाल रहो जय आप नाम । सब जैनिनको बहु मोद धाम ॥ ये ही विनती जिनराज सूर | हम करें चरण में आश पूर
॥ ८॥
सोरठा । परम शर्म दातार । जैनधर्म जयवन्त हो ||
मिथ्या मतको टार । सम्यग्प्रगट करो सदा ||९||
इति शुभम् ।
फिर हाथीपर विराजमान करके गाजे बाजे सहित नगर में घूमते हुए बंगले पर आ उपस्थित हुए । इस दिन २ बजे से जैन यंग मेन्स एसोसियेशनका अधिवेशन हुआ । शेठजी सभापति हुए । गत वर्ष स्वीकार किये हुए तमगे बाँटे गए व आगामीके लिये अनुमान ५० के नवीन प्रण हुए, जैसे एक ५० ) का तमगा उसे मिले जो २०० आदमियोंसे मदिरापान छुड़ावे, व ५०) नकद और १० ) का तमगा मि० जैन वैद्य जैपुर उसे देवें जो १००० आदमियों से मांसत्याग करावे | रायसाहब फूलचंद इंजिनियर लखनऊने १००) मासिक उसे देना स्वीकार किया जो ३ वर्ष तक जापान में शिल्प विद्या सीखे । बाबू माणिकचंद खंडवाने बी. ए. पास होनेपर जानेकी इच्छा प्रगट की । इसपर राय फूलचन्दजीको “ जैनभूषण " का पद दिया गया था। जहां तक मालूम है अभी तक कोई भी जापान नहीं भेजा गया है । रायसाहबको अपना बचन पूरा करना चाहिये । ता. २६ को फिर एसो० का जल्सा था। मंडप सभा के लिये अलग बना था, स्त्री पुरुषोंसे छा रहा था । स्त्रियोंके बीच में खड़े हो श्रीमती मगनबाईजीने स्त्रीशिक्षापर १ घंटा बहुत ही असरकारक भाषण दिया, जिसपर पं० अर्जुनलाल सेठी बी. ए. को महासभा की ओर से
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