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________________ सन्तति लाभ । [१७३ और चने चवाती है व लड़ाई झगड़ा करना अच्छा समझती है। इस सम्बतमें बम्बई और मदरास हाते में पानीके कम पड़नेसे इतना कठोर दुष्काल पड़ा था कि जिससे पार्लियामेन्टमें ऐसी रिपोर्ट की गई कि इस दुष्कालसे साढ़े तेरा लाख आदमी मर गए। ऐसे समयपर रूपावाईने बहुत कुछ अन्नादि बटवाया तथा बम्बईके उदार सेठोंने गुजरात व दक्षिणकी तरफ बहुतसा द्रव्य भेजकर दुष्काल पीड़ितोंकी सहायता की । इतने में आसौज वदी १४ का दिन आगया और प्रातःकाल शुभ नक्षत्रमें रूपमतीने एक बहुतही सौम्य मूर्ति पुत्ररत्नको जन्म दिया। इसके अति सुहावने मुखको देखकर माताको जो हर्ष हुआ वह कहा नहीं जा सकता । गांधी मोतीचंदने अपनी पुत्रीकी संतति रत्नको निरखकर बहुत ही हर्ष माना और बड़ी धूमधामसे इस पुत्रका जन्मोत्सव किया । सर्व कुटुम्बको इसकी ओर बहुत ही प्रेम आकर्षित हुआ इससे सबने इसका नाम प्रेमचंद रक्खा । जन्मपत्र बनवाया गया। ज्योतिषियोंने इसको पुण्यशाली, विद्यावान तथा धर्मात्मा होगा ऐसा कहा । गांधीजीने श्री जिन मंदिरजीमें बड़े उत्सवसे पूजन कराई और कुटुम्जियोंको उचित दिन भोजन कराया व दु:खियोंको दान बांटा । जिस दिन इस पुत्रका जन्म हुआ उसी दिन तार द्वारा बम्बई खबर भेजी गई । सेठ हीराचंद, मोतीचंद आदि सर्व ही कुटुम्बी जन व स्त्रियोंको पुत्र जन्म सुनकर बड़ा ही आनन्द हुआ क्योंकि यह सेठ हीराचंदका प्रथम ही पौत्र था और चारों भाइयोंने एक यही बालक जन्मा था। सेठ हीराचंदने बम्बईके जिन मंदिरजीमें वृहत् पूजन रचाई तथा दानके लिये भी द्रव्य निकाला। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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