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अध्याय ग्यारहवां ।
१०००) दानवीर सेठ माणिकचंदजी |
५० १) तबनप्पा आण्णा लेंगडे, शाहपुर । ५०१) धर्मराव सुभेदार, बेलगांव । ५०१) चंद्राप्पा भीमराव देसाई,
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कुछ रकम फुटकर भी आई।
रात्रिको पायसागर विदरेके सभापतित्वमें फिर सभा हुइ । ऐलक त्यागी पन्नालालजी महाराजके साथ जैनबिद्री जाते पं० पासू हुए गोपाल शास्त्रीका दान पर भाषण हुआ । श्रीयुत यल्लाप्पा मंटगणी कर मास्तरने स्त्री शिक्षा पर कहा । श्रीयुत बुरसेने हुबली के शिक्षण फंडमें १२००) दिये । सेठजी के प्रयत्न से वोर्डिङ्गके प्रबन्ध व धर्मादा रकमकी व्यवस्था के लिये १३ महाशयोंकी स्थानीय कमेटी बनी । सेक्रेटरी श्रीयुत कृष्णराव बुरसे हुए तथा यह ठहराव हुआ कि धर्मादेकी रकम कोषाध्यक्ष जमा करके बोर्डिङ्ग, पाठशाला व जिन मंदिर के लिये खर्च करें ।
यहांके परदेशी श्वेताम्बरी लोगोंने एक प्राचीन दिगम्बर मंदिरको ठीक कराकर अपनी प्रतिमाएं बिराजमान की हैं जिसमें दिगम्बर प्रतिमा भी हैं । इनकी ओरसे पाठशाला व कन्याशाला चल रही है। सेठजी व शीतलप्रसादजीने परीक्षा ली । फल अच्छा ही रहा । हुबली से सीधे बम्बई आए ।
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हुबली कर्णाटक भाषी देश है । सर्व स्त्री पुरुष कनड़ी भाषा बोते व लिखते हैं । यह भाषा हिन्दी से गुजराती व मराठीकी अपेक्षा अनमिल है तौ भी यह देखने में आया कि हिन्दी भाषा भी यहां वाले समझ लेते हैं व हिन्दी बोलनेवाले से हिन्दी में बात कर लेते हैं । यह दशा देखकर भारत में जो एक
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कर्नाटक देशमें हिन्दी
भाषा ।
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