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________________ दानवीरका स्वर्गवास । [८८? भी बहुत कम संभावना है । यद्यपि आज सारे जैनसमाज में सेठजीकी कीर्तिपताका फहरा रही है और समी लोग उनकी मुक्तकण्ठसे प्रशंपा कर रहे हैं, तो भी हमारा विश्वास है कि वास्तवमें सेठनी किस श्रेणीके पुरुषरत्न थे, इस बातको बहुत ही कम लोग जानते होंगे। उनके हृदयमें जैनसमाजके प्रति नो भावनायें रहती थीं, जिन निष्कपट:वृत्तियोंसे वे समाजसेवामें अहर्निश तत्पर रहते थे और जिन शान्तता उदारता तथा धीरतादि गुणोंसे उन्हें प्रत्येक काममें सफलता मिलती थी, उन सबके परिचय प्राप्त करनेका जिन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ है वे उन्हें केवल दानवीर और धनी ही न समझते थे, किन्तु एक महात्मा समझकर अतिशय पूज्यदृष्टिसे देखते थे। सेठनीने गत बारह वर्षोमें जो जो काम किये हैं, उन सब पर दृष्टि देनेसे यदि यह कहा जाय कि वे इस समयके युगप्रवर्तक थे-उनके प्रयत्नोंने जैनसमानमें एक नया युग उपस्थित कर दिया है, तो कुछ अत्युक्ति न होगी । केवल स्थप्रतिष्ठाओंमें और मन्दिर बनवानेमें ही लाखों रुपया प्रति वर्ष खर्च करके सन्तुष्ट हो जानेवाले जैन समाजके धनियोंका चित्त विद्यामन्दिर स्थापित करनेकी ओर आकर्षित करनेका प्रधान श्रेय सेठ माणिकचन्दजीको ही प्राप्त था। उनकी देशापी अनन्यसाधारण कीर्तिने धनियों पर वह प्रभाव डाला है, जो बीसों समाचारपत्र, पचासों उपदेशक और सैकड़ों सभा समितियों नहीं डाल सकती हैं। यह आपहीके सभापति-पदका प्रभाव है, जो सभा सुसाइटियों को बच्चोंका खेल समझ र उनकी ओर आख न उठानेवाले धनाढ्य लोग आज उन्हीं सभाओंके सभापति बननेके लिए लालायित रहते हैं और अपने प्रसादलब्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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