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संयोग और वियोग ।
[ २७५ पता इनकी नोटबुक में लिखा ही था। आपने श्री भक्तामरजीकी बहुतसी प्रतियां मंगाकर अपने घरमें व दूसरे पाठ करनेवालको बाटनेके लिये सेठजीने प्रथम ही एक पत्र सेठ हरजीवन रायचंदको आमोद लिखा जिन्होंने अनुवाद करके प्रकाशित किया था । यह नरसिंहपुरा जातिके एक सुशिक्षित गृहस्थ हैं, जैन शास्त्रोंके मननका अभ्यास है, तत्त्व को समझते हैं, परोपकारी हैं, गुजरात में माननीय हैं। सेठजीका पत्र पति ही सेठ हरजीवन रायचंद को बहुत हर्ष हुआ। क्योंकि यह तो इनके कर्ण गोचर हो ही चुका था कि बम्बई में सेट माणिकचंद जौहरी एक बड़ा ही धर्मात्मा, परोपकारी व मिलनसार सेठ है । इनके प्रतापसे बहुतसे गुजराती बंधुओंने बम्बई में बन्दा प्राप्त किया है । सेठ हरजीवन रायचंदने पुस्तकें भेजीं व उत्तरमें एक लम्बा चौड़ा पत्र लिखकर गुजरात देशके अज्ञानकी दशा बतलाई । यह पत्र बांचकर सेठजीको बहुत ही सन्तोष हुआ । सेठजी जैसे पत्थर पहचानमें जौहरी थे वैसे मनुष्यकी भी पहचान करनेवाले सच्चे जौहरी थे। ऐसे विद्याप्रेमी, परोपकारी पुरुषोंके लाभको महान लाभ समझते थे । इस पत्रका उत्तर सेठजीने दिया और उपदेश किया कि वे कुरीतियां बन्द करने में, व स्वाध्यायके प्रचार में परिश्रम करें। तथा बालकोंके लिये पाठशाला खोलें । यहींसे इनका सम्बन्ध प्रारंभ हुआ। अब तो वर्षमें दोचार दफे परस्पर पत्र व्यवहार होने लगा । धर्म सम्बन्धी पुस्तकोंका गुजराती में भाषान्तर करने को कई दफे सेटजीने लिखा ।
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