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अध्याय आठवाँ । .. सेठ माणिकचंदजीको पालीताना सेजयके उद्धारका बहुत
बड़ा ध्यान था और ऐसा ही मुनीम धर्मचंएक विधवाका दनीको था जो सच्चे दिलसे तीर्थकी उन्न२०००) का तिमें दत्तचित्त थे । दक्षिण हैदराबाद दान। निवासी सेठ पूरणमल हणमंतराम पांड्याकी.
विधवा बाई रामबाई पालीताना पधारी थी। आप धर्मचंदजीके उपदेशसे २०००) के दानका उपयोग नीचे प्रमाणे कार्यों में करनेको कह गई:
२००) पालीतानाकी नई धर्मशालामें कोटरी नग १ बनाना । ११००) पहाड़पर शांतिनाथजीके मंदिरके मोटे मंडपमें संगमर्मर
पत्थर लगाना। ५००) ग्रामके नयं मंदिरजीमें जो गभारा है उसमें चांदीके.
द्वार जड़े जावें । २००) सं० १९५१ की प्रतिष्ठाके समय नए मंदिरमें एक
प्रतिमा पधराई जावे । इस खबरको सेठ माणिकचंदने सं० १९५० जेठ वदी १४. सोमवारके दिन लिखकर जैन बोधकमें छपाने भेजी दी जो इस पत्रके अंक १०७ जुलाई १८९४ में मुद्रित है। इस पत्रके नीचे सेठजीका यह रिमार्क था
" एकठां काम करवाने बे हजार रुपीया बाई आपी गयां - छे तेने संघ तरफथी अने हमारी तरफथी धन्यवाद आपिये छिये ।
अमें सरवे बंधुजनोने विनंती करिये छीये के एहवा उदार दिलना भाईयोने पईसा सारी ठेकाणे वापरवाने हालमां सउथी उत्तम
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