SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संयोग और वियोग । [ २७७ ठेकाणुं श्री शोलापुरना चतुर्विध दानशालामां मदत करवी. ए ठेकाणुं घणुं लाभनुं छे । " पाठकों को इससे मालूम होगा कि विद्यादान आदि ४ प्रकारके दानोंका व उसके होनेवाले कार्यका कैसा महत्त्व सेठ माणिकचंदजीके दिलमें था । बम्बई दि० जैन सभा सेठ माणिकचंदके मंत्रित्व व पंडित गोपालदासके उपमंत्रित्व में बहुत कायदे से दि० जैन सभाबम्ब- काम करने लगी । इसका प्रथम वार्षिकोत्सव ईके कार्य । मगसर सुदी १४ को हुआ । सालमे १५ अंतरंग व १९ उपदेशक सभाएं हुई। इस समय सभाके आधीन ३ खाते चालू थे । खाता खर्च सभा पाठशाला पुस्तक आमद २२३॥) ३६४॥=)॥ ३४८|||=)|| १२४) ।।। २६५) । १९३/-) Jain Education International बचत ९९| = )| ९९॥ =) १५५ ॥ - ॥ कुल ५८२/८)| ३५४ ॥ ॥ ९३७=) जैन पाठशाला में पं० जीवराम शास्त्री पहले नियत हुए। फिर पं० निवासाचार्य व एक ज्योतिष शास्त्री भी रखा गया। इसका उपयोग स्वयं गोपालदास और पं. धन्नालालजीने भी लिया । सं० १९५९ मगसर सुदी १४ तक पं० गोगलदास शाकटायन, सभासोत, चंद्रप्रभुकाव्य ६ सर्ग, सर्वार्थ सिद्धि पूर्ण, राजवार्त्तिक अध्याय, परीक्षामुख परिच्छेद १॥, अलंकार चिंतामणि प्रथमपरिच्छेद, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy