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२७८ ] अध्याय आठवाँ । कुवलयानंद पौन, गृहगणित स्पष्टाधिकारसे पूर्वतक, जिनेन्द्रव्याकरण थोड़ा, आदिनाथ पुराण पत्रे ५५-इतने विषय अपनी तीव्र बुद्धिके कारण पढ़ चुके थे तथा पं० धन्नालाल शाकटायन षड्लिंग, चंदप्रमु काव्य २॥ सर्ग, परिक्षामुख १ परिच्छेद ही कर सके थे । पुस्तक खातेसे लिखित ग्रंथ गोम्मटसार अष्टशती आदि भंडारमें मंगाये जाते थे । तथा सभाने एक परितोषिक भंडार भी कायम कर लिया था कि अमुक २ विषयोंमें परीक्षा देकर जो भारतमें कोई जैन विद्यार्थी उतीर्ण हों उनको ईनाम दिया जाय अर्थात् परीक्षालयकी नींव जेठ सुदी १ सं १९५१ को डाली गई थी। दसहरे आदि तिहवारोंपर बहुतसे रजवाड़ों आदिमें पशवध
होता था उसको रोकनेके लिये कई दयावान पशु हिंसावदीका प्रयत्न जैनी भाई प्रयत्न कर रहे थे। उनमें हमारे और सूरतके लोगोंद्वारा सेठ माणिकचंदनी भी थे। प्रयत्नसे क्या मानपत्र । नहीं होता ? धरमपुरके महाराणाने अपने
राज्यमें होनेवाले पशुवधको बंद किया तब सूरतके लोगोंने राजाको मानपत्र दिया उसका जवाब जो राजाने दिया वह जैन बोधक अंक ११२ दिस० १८९४ में मुद्रित है. जिसका सारांश यह है___मैं सन् १८९१ में राज्यगद्दीपर बैठा तब ही से मैं ऐसे रिवाजसे विरुद्ध था। मैंने बम्बई, सूरत बड़ौदा आदिके विद्वानोंसे ७५ मत शास्त्रीय प्रमाण सहित इस हिंसाके विरुद्ध मंगाए तबसे मैं बंद करना चाहता था सो इस साल बंद करा दिया है
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