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संयोग और वियोग । [२७९ तथा आमरण तालुकेमें भी कर दिया गया तथा मेरे राज्यमें चैत्र सुदी १५ के दिन मनुष्यको बड़ी निदेयतासे मारते थे व मनुष्यके कपालपर तलवारका जख्म करते थे सो सब बंद करा दिया है आदि।"
__इसके बाद नगरसेठ गुलाबदासने महाराणा साहब व कुंवरको हार पहराथा । रूक्मणीबाईको विवाह लानेके बाद ही वह गर्भवती हुई
और ९ मास बाद एक कन्याको जन्म दिया। सेठ पानाचंदको यह पहली संतति थी जो सेठ पानाचंदको पुत्रीका लाभ । प्राप्त हुई सेठ । पानाचंदने सामान्य रूपसे
उत्सव किया । माता कन्याको पालने लगी। पालीताना राज्यमें जिस नये मंदिरको बड़े परिश्रमसे सेठ
माणिकचंद और नवलचंदने तय्यार कराया पालीताना मंदिरकी था उसकी प्रतिष्ठाका मुहूर्त माघ शुक्ल ५ प्रतिष्ठा । सं० १९५१ नियत था। जिसके लिये
२ मास पहलेसे खास तयारियां करानेके लिये सेठ माणिकचंदजीने मुनीम धर्मचंदको ताकीद की थी। नई धर्मशालाके ज़मीनमें दो दो सौकी लागतके १० कोठे बनवाए तथा जो २००) दे उसीका नाम लिखा जाय ऐसा प्रस्ताव किया। ठहरनेके लिये श्वेताम्बरी धर्मशालाएं भी ली गई। भावनगर व घोघाके भाई एक मास पहलेसे यहां रहकर सब प्रबन्ध करने लगे। प्रतिष्ठाकार शोलापुरके सेठ हरीभाई देवकरण और रावजी कस्तुरचंदजीने १ मास पहलेसे अपनी ओरसे
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