SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 556
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४९१ माघ कृष्ण पंचम्यां मत्स्थाने स्याद्वाद पाठशालायाश्छात्राः स्वपरीक्षादानार्थमुपस्थिताश्च परीक्षादानोत्तरभारकृताभ्यासत्त्वेन निर्णीताः। भावार्थ-माघ कृष्ण पंचमीको मेरे स्थानपर स्याद्वाद पाठशालाके छात्र आए । परीक्षा ली । अभ्यास अच्छा किया है ऐसा निर्णय हुआ। विद्याप्रेमी सेठ माणिकचंदजीको सिवाय अपने परोपकार कामके और कोई शौक किसी तरहका न था । जिस शहरमें जाते थे वहां श्री जिनमंदिर व कोई प्राचीन स्थान तो देखते थे, पर अन्य किसी मेले ठेले तमाशे आदिमें जानेकी बिलकुल रुचि न रखते थे। खानपान भी बहुत सादा था । तथा सबेरेसे जब तक कोई काम नहीं कर लेते थे तब तक मध्यान्हका भोजन नहीं रुचता था। सेठनीकी यह मंशा थी कि मैदागिनीके बगल में स्थान लेकर एक कायदेका मकान स्याद्वाद पाठशाला व बोर्डिंगके लिये बनवा दें। उस स्थानके लिये आपने बहुत प्रयत्न किया। पोष्ट-माष्टर लाला रघुनाथदासको कई सौ रुपये उसके लिये भेजे उन्होंने बयाना भी दिया, पर वह सेठजीके मरणकाल तक ठीक न हुई । इस दफे आपने काशीसे सिंहपुरी व चंद्रपुरीमें भी जाकर दर्शन किये । श्री श्रेयांसनाथका जन्मकल्याणक सिंहपुरी तथा श्री चंद्रप्रभुनीकी चंद्रपुरी है। आप बनारससे सकुशल बम्बई आए। श्री गजपंथानीमें बम्बई प्रान्तिक सभा होनेवाली थी उसकी फिकर हो गई। जाति व धर्मकी सेवामें धनाढ्य लोग धनके खर्चनेवाले तो बहुत मिलेंगे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy