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________________ १८८] अध्याय सातवा । अबतक रुपया कमाया तो बहुत पर कोई भारी काम नहीं किया। देखो न, पिताजीसे और न भाई मोतीचंदजीसे हमलोग कुछ दान करा सके, इसी तरह हमलोग भी मर गए तो हमारी यह लक्ष्मी हमारे द्वारा सदुपयोगमें न लग सकेगी। इससे अब कुछ काम करना चाहिये । पानाचंदनीने बड़े साहसके साथ कहा कि दान धर्ममें कहां पर क्या काम करना व किस तरह करना यह सब तुम्हारे सुपुर्द है, तुम विचार करके जिस काममें द्रव्य लगाना चाहो मुझसे केवल पूछलो और खर्च करो, किसी प्रकारका संकोच मत करो, मेरा चित्त तो व्यापारके सिवाय दूसरी वातोंके विचार में कम जाता है तुम अच्छी तरह लक्ष्मीका उपयोग करो । नवलचंदने भी इस बातमें अपनी पसन्दगी प्रगट करनेके अर्थ अपना प्रसन्न मुख दिखा दियाकुछ उत्तर न दिया क्योंकि नवलचंदजीको बात करने में बहुत संकोच होता था । इस समय भारतमें बड़े लाट लॉर्ड रिपनका जमाना था, यह लाट बड़े दयालु, प्रजावत्सल व भारतमें शिक्षा आदिके प्रचार करानेमें उत्साही थे। इनके समयमें बहुतसी प्रबन्धक शक्ति स्थानीय हाकिमोंको दी गई कि वे द्रव्यको एकत्र कर अपनी शक्तिसे उपयोगी कामोंमें लगावें । इनके समयमें शिक्षा की ओर खास ध्यान दिया गया जिसके लिये सर विलियम हन्टरके नेतृत्वमें एक कमीशन नियत किया गया। इनके समयमें नेपाल और काश्मीरके सिवाय सर्व भारतकी जनसंख्या एक साथ पहले पहल सन् १८८१ में लिखी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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