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________________ लक्ष्मीका उपयोम । [१८९ इस समय जैनियोंमें भी लिखने पढ़नेकी चर्चा कुछ ज्यादा हो चली थी। रेलवेके निमित्तसे परदेश जाना सेठ हीराचंद नेमचं- आना भी बढ़ गया था । इमड़ोंकी ऐश्वर्य दका सेठ माणिक- वृद्धिका दक्षिणमें शोलापुर नगर अब भी चंदसे परिचय । प्रसिद्ध है । उस समय शोलापुर में सेठ हीरा चंद नेमचंद दोशी परोपकारके काममें प्रसिद्धि पारहे थे। यह शेठ हीराचंद नेमचंद निहालचंद उत्रेश्वर गोत्र धारी दशा हमड़के रत्नबाईसे उत्पन्न दो पुत्रोंमेंसे छोटे पुत्र हैं। बड़े का नाम सखारामजी है, यह मूल निवासी ईडरस्टेटके वांकानेर ग्रामके हैं। नेमचंदके पिता निहालचंद भीमजी पहले व्यापारके लिये फलटनमें बसे और कपड़ेका काम शुरू किया । संवत १८९५ में इन्होंने एक दूकान शोलापुर में भी की। सेठ हीराचंद मगसर वदी ८ (गुजराती कार्तिक वदी ८)सं.१९१३के दिन शोलापुरमें जन्मे। १० वर्षकी उम्रतक सर्कारी शालामें मराठी पढ़ी फिर स्कूल छोड़कर संस्कृत, व्याकरण और काव्यका अभ्यास किया और सागवाड़ाके भट्टारक राजेन्द्रभूषणसे जब वे शोलापुरमें ४ मास ठहरे, भक्तामर व सूक्तमुक्तावलीके अर्थ सीखे। संवत १९२६में यह अपने पिताजीके साथ श्री गिरनार और सेजयकी यात्राको गए थे। जूनागढ़में इनके पिताने अपने भानेजे शाह मोतीचंद खेमचंद और भतीजे दोसी तलकचंद पदमसी आदिके योगमें एक दि० जैनमंदिर नया बंधवाकर सं० १९२६ वैशाखमें प्रतिष्ठा करा दी और वहां चार महीना ठहरे। आयुकर्म समाप्त होनेसे नेमचंद (गु०) वैशाख वदी १४के दिन स्वर्ग पधारे। यात्रासे लौटकर इन्होंने खानगी रीतिसे इंग्रेजीका मी इतना अभ्यास Jain Education International ... For Personal &Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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