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________________ १९० ] अध्याय सातवाँ । कर लिया कि यह समाचार पत्र व पुस्तकें पढ़ लेते व चिट्ठीपत्री कर लेते थे । सं० १९३० में इनकी लग्न हुई। १७ वर्षकी उम्रसे यह कपड़ेकी दूकान सम्हालने लगे। शोलापुरमें स्पिनिंग एन्ड वीविंग मिल है इसके एजन्ट बम्बई निवासी सेठ वीरचंद दीपचंदजी थे। इनके साथ सेठ हीराचंद कपड़ेका व्यापार करते थे। इनको धर्मशास्त्रोंके वांचनेके सिवाय बाहरी पुस्तकोंके पढ़नेका भी बहुत शौक था । संवत १९३६ में इन्होंने शोलापुरके बाजारमें एक लायब्रेरी (सार्वननिक पुस्तकालय) स्थापित कराया और आप उसके मंत्री हुए। लायब्रेरीके निमित्तसे सेठ हीराचन्दनीकी सर्व साधारणमें बहुत मान्यता हो गई, यहां तक कि संवत १९३७में शोलापुरकी म्यूनिसिपालिटीमें आप सर्कारी मेम्बर नियत हुए । उस समय व्यापारियोंपर कर बढ़ाया गया था उसको उक्त सेठने लोगोंकी तरफसे सर्कारसे लिखा पढ़ी करके बहुत घटवा दिया इससे इनकी बहुत कीर्ति हुई, जैन जातिमें जो कुछ जागृति इस समय फैली हुई है, स्वाध्यायका जो प्रचार हो रहा है, ग्रन्थोंके प्रकाशनका जो कार्य हो रहा है, संस्कृत व धर्म विद्याकी पढ़ाई में विद्यार्थी दत्तचित्त हो रहे हैं इस सर्वके मूल कारण उक्त सेठजी हैं । अब भी आप आनरेरी मजिस्ट्रेट हैं और जाति व धर्मसेवामें लीन हैं तथा बम्बई दिगम्बर जैन प्रान्तिक सभाके सभापति हैं । सं० १९३७को शोलापुरसे आप किसी व्यापारी कार्य्यके निमित्त बम्बई आए उसी समय और भी शोलापुरसे जैनीमें व्यापारी बम्बई आए थे। सेठ हीराचंदजीको शास्त्र स्वाध्यायका नियम था, यह बम्बईके जिन मंदिरमें स्वाध्याय करने लगे इतनेमें क्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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