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________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग [ ७२१ जबसे वाइसराय लार्ड मिन्टोने श्री शिवरजी पर्वतके पट्टेके ___बंगाल गवर्नमेन्टके हुक्मको रद्द किया तबसे सेठ माणिकचंदजीकी सेठजीको बहुत बड़ी चिंता थी तथा आप चिंतामें वृद्धि और उस पट्टेके पुनः स्थिर करानेके उद्योगमें थे। शिखरजीके लिये चूंकि उस पट्टेके लिये ५००००)का बयाना प्रयत्न। दिया जा चुका था इससे वह रद्द नहीं होना चाहिये था । इसलिये बाबू धन्नूलालजीने ता. १६ मार्च १९११ को अदालती नोटिस भी बंगाल गवर्नमेन्टको दिया था तथा ता. १६ अक्टूबर १९१२को कमेटीके सभासदों द्वारा यह प्रस्ताव भी स्वीकार करा लिया कि गवर्नमेन्टपर मुकद्दमा चलाया जाय । उधर जो पहाड़का सरवे हुआ था उसमें यह लिखा गया था कि पहाड़के मंदिर और धर्मशालाओंमें सर्व जैनियोंको विना किसीकी इजाज़तके जाने व पूजन करने व ठहरनेका हक है। इस बातकी उजरदारीमें श्वेतांबरी लोगोंने ता: ७ मार्च १९९२ को मुकद्दमा नं० २८८ दायर कर दिया कि दिगम्बरियोंको श्वेतांबरोंकी इजाज़तसे पूजनेका हक है, सो भी उनकी ही आम्नायके अनुसार । इस मुकद्दमेंसे सेठजीको और भी भारी चिंता हो गई। तब लाला प्रभुदयालकी सलाहसे एक मुख्य सभासदोंकी कमेटी कानपुरमें ता० ८ और ९ फर्वरी १९१३ को बुलाई गई, जिसमें सेठनी भी पधारे व कलकत्तेसे धन्नू बाबू व ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी भी आए थे। सहारनपुरसे जम्बूप्रसादनी आदि १४ मेम्बर खास २ कानपुरवालोंने उत्तम स्वागतका प्रबन्ध किया था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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