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________________ ८६४ ] अध्याय तेरहवां । प्रति प्रेम उद्भवे छे. अरे! कुदरती क्रूर कायदा ! नारा हृदयमांथी प्रेमनुं नाम निशान पण अदृश्य थई गयु छे के शु? जो तारामां प्रेमनी ज्योत होय, तुं दयानुं नाम जाणतो होय ता उ.मारा रंक विद्यार्थीओन छत्र-रत्न हरी लेवाने अयोग्य वर्तन चलावो शके नहि.. गृहमां शिक्षण मेळवनाराओ करतां बोर्डिंगमा रही शिक्षण मेळवनाराओवें वर्तन ऊंच बने छे, मगन उच्च संस्कारी बने छे, अने तेवा मनुष्या पोते सुधरी पोताना कुटुम्बने-ज्ञातिने अने देशने सुधारी शके छे. एवा बोर्डिंग हाउसो आ नरवरे मुंबाई, अमदावाद, कोल्हापुर, रतलाम विगेरे स्थळे पोताना खर्चथी स्थापित के छे. बीना स्थ-- पायला अने स्थाता बोर्डिंग हाउसोमां पण तेमनो फाळो प्रथम जडी आवशे. सनाथ अने अनाथ श्राविकाओना हितन थे मुंबडमां स्थपायेल श्राविकाश्रम तेमना कर्तव्यपरायणी, तेमन सुमार्गना अनुकरणीय विदुषी महिलारत्न बहेन मगनव्हेनना श्रय ळे चाले छे. केटलीक पाठशाळाओ, संस्कृत शाळाओ ने कन्याशाळ ओ तेमना पोताना खर्चथी के मुख्य फाळाथी चाले छे, ते उपरांत मुंबाई सुरत-अमदावाद अने बीजे अन्य स्थळे जैन बंधुओना सगवड अर्थे धर्मशाळाओ घणान साधन साथे स्थापी छे. आ बघां खातांओ स्थापी पोताना प्रवृत्तिमय धंधा चलाववानी साथे प्रांतिक कोन्करन्सनी उत्तमोत्तम व्यवस्था राखवा साथे तेनापर घणीन बारीक देखरेख जोई कोई अवलोकनकार आश्चर्यमां लीन थया विना रहेन नहि, जेनो एक नमुनो-हुँ गई सालमा विद्याभ्यास माटे मुंबाई गयो हतो त्यारे सुरतथी रवाना थती वखते लाखोने खर्चे सर्वे लोकोने उपयोगी हीराबाग धर्मशाळा माटे वपराय छे, त्यां उतरवाना प्रोग्राम Jain Education International For Personal & Private Use Only Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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