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________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग [ ५११ है उसका क्या कारण है ? आप लोग विचारते होंगे सो इस सभ्य मूर्त्तिके सन्मान में इसका विद्यानुराग ही कारण है । आपने सबसे अधिक द्रव्य विद्या हीके लिये अर्पण किया है। जैनियों में अनेक आपसे भी धनाढ्य पड़े हुए हैं परंतु परोपकारी और शिरोमणि आप ही हैं । सभा अधिवेशन ता० २७ अप्रैल तक हुए । जन संख्या ३००० से अधिक थी । ता० २६ अप्रैलको शीतलप्रसादने श्री शिखरजी के दुःखको कहकर प्रस्ताव किया कि सभाकी ओर से चंगले बननेके विरुद्ध तार जाना चाहिये । इसका समर्थन स्वयं सेठजीने किया और कहा कि अपने पूज्य महापर्वतकी सर्वस्व भूमिको रक्षित रखना हमारे भाइयों का कर्तव्य है । प्रस्ताव पास होकर दोनों - सभाओं की ओर से तार दिया गया । सभामें चंदेकी अपील होनेपर सेठजीने तीर्थक्षेत्र कमेटीको २०१), संयुक्त सभाको ५१ ) तथा पींजरापोल फल्टनको ५१ ) इस तरह ३०३ ) का दान किया ।, तथा सेठ हीराचंद ने भी १०२) संयुक्त सभा व ११) पिंजरापोलकों दिये | कोल्हापुर सर्कारने बन्दर मारनेकी मनाईका हुक्म जारी किया इससे धन्यवाद दिया गया। श्रीयुत नारायण गोविंद कीचक मुंसिफ साहबके सभापतित्वमें सेठजी और सेठ हीराचंद नेमचंद को मानपत्र दिये गए । वास्तव में इस समय ये ही दोनों वीर जैन समाजका अविद्यारूपी राक्षसकी सेनाको हटानेके लिये रामलक्ष्मणकी तरह उद्योगशील हो रहे थे अथवा सारे भारतकी जैन समाजमें चंद्र और सूर्यकी भांति प्रकाशमान थे। रात्रिदिन परोपकारतामें तनमन धन व्यय करना इस वीरोंका कर्तव्य था । इस उत्सव में - श्रीमती मगनबाई तथा कंकुबाईने स्त्रियों में उपदेश देकर ज्ञानमार्गकी For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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