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महती जातिसेवा प्रथम भाग
[ ४७९ के समाजकी उन्नति नहीं हो सक्ती है । इसमें सर्वसे पूर्व बालकोंको धर्म ही की शिक्षा देनी चाहिये जिससे उनको यह विदित हो जाय कि उनको बाल्यावस्थामें ब्रह्मचर्य पाल विद्याभ्यास करना योग्य है । उच्च शिल्प और व्यापारकी योग्यता प्राप्त करानेके । लिये हमको बड़े २ नगरोंमें जैन बोर्डिग खोल्ने योग्य है । जब छात्र उच्च शिल्पादि जान ले तब उनसे कारखाने खुलवावें व व्यापार में सहायता देवें । जबतक हमारे नित्य कामकी वस्तुएं जैसे कपड़ा, दियासिलाई, छाता आदिक यहां न बनेंगे तबतक हमारे धनकी उन्नति नहीं हो सक्ती | स्त्री शिक्षाकी आवश्यक्ता बताते हुए कहा कि बालकका मन एक प्रकारकी पृथ्वी है जिसमें माता ही उत्तम बीज डालकर कृषकका कार्य कर सकती है । स्त्रीशिक्षाके उत्तेजनार्थ हमको अपने शास्त्रोंमेंसे प्राचीन पढ़ी हुई गृहस्थ स्त्रियोंके जीवनचरित्र जमाकर पुस्तकाकार प्रगट करना चाहिये । व्यर्थव्यय व कुरीतिको दूर करनेकी प्रेरणा करके तीर्थक्षेत्रों के विषय में कहा कि नये मंदिर बनानेकी अपेक्षा प्राचीनका जीर्णोद्धार करना चाहिये तथा प्रबन्धकर्ताओं को उचित है कि वार्षिक हिसाब प्रगट किया करें । प्राचीन जैन ग्रंथोंके उद्धार, अनाथोंकी रक्षा पर कहके अहिंसाके प्रचारपर विशेष जोर दिया। मांसाहार निषेधक पुस्तकें बांटना चाहिये | आपने कहा कि इंग्रेजीमें good news for the afflicted नामकी पुस्तक है जिसमें मांसाहार विरुद्ध प्रमाण और दृष्टान्त है उसका उर्दूमें उल्था करानेके लिये अलीगढ कालिज के मुसलमान छात्रों को इनाम नियत किया था । ११ ने तर्जुमा लिखा जिसमें सर्वोत्तम ३ को ७५ ) का इनाम दिया गया था । सर्वोत्तम उल्था एक बी० ए० का था जिससे प्रगट होता था कि उसने
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