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६०८] अध्याय ग्यारहवां । जैन प्रतिमाएं कोरी हुई हैं। एक जगह पर पद्मासन मूर्तिकी पीठकी पूजा होती है। यह बलिभद्र बलदेव मुनिकी कही जाती है, जो पांचवें स्वर्ग गए हैं। मांगीतुंगी जाते हुए बीचके पर्वतकी मार्गपर एक दग्धस्थान है। कहते हैं कि श्री कृष्णजीके शरीरकी दग्ध क्रिया यहां ही हुई थी। नीचे १ मंदिर सेठ हरीभाई देवकरण शोलापुरवालोंसे सं० १९१७ में प्रतिष्ठित, दूसरा बार्सीवाले एक सेठका है, तीसरा अधूरा पड़ा था जिसको पूरा बनाने में सेठ पूरणमाह सिवनीने व्यकी मदद की है । सेठ नवलचंदनी एक वर्ष पहले भी यहां हो गए थे तब आपने बार्सीवाले मंदिरमें पत्थर जड़वाया था। - यहां कार्तिक सुदी ११ से १५ ता० २४ नवम्बरसे २८ तक बम्बई दि. जैन प्रान्तिक सभाका सातवां वार्षिकोत्सव था । मनमाड़ स्टेशनसे ३२ मील होने पर भी २००० से अधिक संख्या आ गई थी । शोलापुरसे सेठ हीराचंद रामचंद व कई भाई आए थे । सेट नवलचंदकी तबियत कुछ अस्वस्थ थी तौभी आप गए
और वहां सभाके कार्यों में मन लगाकर उद्योग किया। समाके लिये भिन्न मंडप बना था, प्लेटफार्म उचा था । सुदी १२ को २ बजेसे कार्रवाई शुरू हुई। शीतलप्रसादनीने मंगलाचरण किया, तब सेठ गुलाबचंद हीरालाल धूलियाने अपना स्वागतका भाषण पढ़ा । सेठ नवलचंद हीराचंदके प्रस्ताव व रतनचंद मुसावल के समर्थनसे सेठ हीराचंद रामचंदने प्रमुखपद ग्रहण करके अपना व्याख्यान सुनाया। दूसरे दिन मूलचंद किसनदास कापड़िया, सम्पादक दि० जैनने गत वर्षकी रिपोर्ट सुनाई, जिसका अच्छा प्रभाव पड़ा। मार्गशीर्ष वदी
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