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महती जातिसवा द्वितीय भाग ।
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व्याख्यान दिया। यहांसे सेठजी ता. ४ को चलकर सूरत होते हुए ता. ६ नवम्बरको बम्बई आए । :
इतनेमें कार्तिककी अष्टान्हिका निकट
आगई तब
सेठजीको विचार हुआ कि इन्हीं दिनों बम्ब प्रान्तिक सभाका अधिवेशन तो मांगीतुंगीपर है और द० म० जैन सभाका कोल्हापुर में है तथा दोनोंका में स्थाई सभापति हूं, दोनों में मुझे कहां जाना चाहिये इस विषय में सेठजीने शीतलप्रसादजी से सम्पति की, तब यही राय रहरी कि कोल्हापुर में प्रदर्शनी व पंचकल्याणकोत्सव है तथा जिम मंदिरकी प्रतिष्ठा है उसे सेठ भूपाल जिरगेने सेठजीकी प्रेरणा से ही निर्माण कराया है इससे कोल्हापुर ही जाना ठीक है । तब शीतलप्रसादजीने कहा कि श्री मांगीतुंगी उत्सव की शोभा आपके विना कुछ न होगी । तब आपने कहा कि हम अपने भाई नवलचंदजी व श्रीमती मगन्बाईको मांगीतुंगी भेजेंगे व आप भी मांगीतुंगी जावें जिससे जल्ला सफलता से हो | कोल्हापुरमें आपके न जाने से कुछ क्षति न पड़ेगी । इसी भांति तय हुआ । सेठजीने नवलचंदजीको बहुत समझाकर मांगातुंगी जानेको सुरत लिखा और आप कोल्हापुर गए । सेठ नवलचंदजी सुरतसे मूलचन्द किसनदास कापड़ियाको साथ लेकर मांगीतुंगी गये । मांगीतुंगी नासिक जिले में २|| मैल ऊँचा जँगलोंके बीचमें एक पर्वत है, यहाँ से श्रीरामचंद्र हनुमानजी, नील, महानील आदि ९९ करोड़ मुनि मोक्ष पधारे हैं । इस पर्व के दो भाग हैं। एकको मांगी दूमरेको तुंगी कहते हैं । बहुत ही प्राचीन कालके तीन मंदिर हरएक पर हैं, जिनमें दिगम्बर
मांगीतुंगी में प्रां० सभा व सेठ नवलचंदजी |
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