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________________ ६०६ ] अध्याय ग्यारहवां। धनसे सेवा कर रहे हैं। हमारी न्यायशीला. भारत . गवर्नमेन्टने भी आपको जे० पी० ( Justice of the Peace ) की पदवीसे विभूषित किया है; और आज श्री वात्सल्यादि गुण मंडित दानवीर महानुभाव माननीयका शुभागमन हुआ है। आपके मुखारविंदके दर्शनसे हम सर्व लोगोंको असीम हर्ष हो रहा है। आपने संपूर्ण जैन जातिपर जितने उपकार किये हैं उनके प्रत्युपकार करनेके लिये हम अशक्य हैं। अतः आपकी सेवामें यह तुच्छ अर्पणपत्रिका समर्पण करते हैं। और आशा रखते हैं कि आप इसे सहर्ष स्वीकार करेंगे और सर्व सभा शुद्धान्तःकरणसे कोटिशः धन्यवाद देती हुई परम पूज्य श्री सर्वज्ञदेवसे प्रार्थना करती हैं कि चारों तरफ जैसी आपकी कीर्ति विस्तृत है उसमें दिन दूनी रात्रि चतुर्गुणी वृद्धि होवे और आपको सहकुटुंब चिरायु करें। अलमिति विस्तरेग । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः। कार्तिक वदी ७ । दाहोद ( पंचमहाल ) वीर सं० २ ४३५ । की समस्त पंचानकी तरफसे सेठ चुनीलाल हंसराज, गांधी जैचंद नाथजी, गेबीलाल सुंदरलालजी बगेरे, रात्रिकी सभामें शीतलप्रसादनीने निश्चय और व्यवहार धर्मपर इसलिये कहा कि यहां कई भाई मनसुख दादा श्वे० के उपदेशसे केवल निश्चायावलंबी हो रहे थे । उनको निश्चय साध्य व. व्यवहार परम्पराय साधक है ऐसा बताया । फिर सेठजीके बम्बई बोर्डिङ्गमें रह कर एलएल. बी. पास करनेवाले शा. चंदूलाल मेहता श्वेताम्बरी वकीलने धर्म और स्त्रीशिक्षापर असरकारक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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