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अध्याय ग्यारहवां । जब तक नया बोर्डिंग न बनेगा तब तक कालेजके छात्र नहीं आ सक्ते। तब सेठजीने बाबू देवीप्रसादनीको जमीन लेनेके लिये कहा। बाबूजीने हरि पर्वत थानेके पास एक बड़ीभारी जमीनका टुकड़ा करीब ३६००) में ठीक किया तब सेठजीने ४०००) भेन दिये । जमीन पक्की लेली गई पर मकान बननेका बहुत दिनों तक कोई भी यत्न न हुआ। पीछे फिर सेठजी एक दफे आगरा आए और बहुत जोर देकर मकान बननेका महुर्त कराकर चले गए। फिर भी कुछ कार्रवाई न हुई। एकदफे शीतलप्रसादजीने बहुत समझा बुझाकर कमरोंका पहले आधा रुपया बसूल करवाकर कमरे शुरू करवाए । धीरे२ आठ कमरे तय्यार हो गए, पर सेठजीके जीवन तक यह बोर्डिंग चालू नहीं हुआ था, परन्तु ता० २१ नवम्बर १६ के भैरोंसिंह जैनके पत्रसे विदित हुआ कि बोर्डिंगका काम शुरू हो गया है । आगरेमें लाला गोपीनाथ और सेठ माणिकचंदजीका संयुक्त फोटो भी लिया गया । आगरासे लौटकर आते ही सेठजीके चित्तको महा दुःखित
कर देनेवाला डिप्टी कमिश्नर हजारीबागका श्री सम्मेद शिवरपर नोटिस ता० २६ मार्च १९०७ का मिला बंगले बननेका जिसमें लिखा था कि पहाड़पर बंगले बननेके प्रस्ताव । लिये जमीन पट्टेपर देनी है इससे दिगम्बरी
और श्वेताम्बरी मुखिया हमसे ५ मई सन् ०७ के अनुमान मिले जिसमें उनके मंदिरोंको हानि न पहुंचे ऐसा विचार किया जाय । यह नोटिस देखते ही सेठजी व अन्य बम्बईके जैनी भाई अचम्मित हो गए । क्योंकि सदासे ही यह पर्वत अति पवित्र
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