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________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५०५ रूपमें सुरक्षित चला आता है। यह पर्वतरान है। दिगम्बर जैनियोंके मन्तव्यानुसार भरतक्षेत्रके अनंते तीर्थकर इसीकी भूमिसे मोक्ष गए हैं व आगामी जावेंगे तथा उनके मध्य अनंते मुनि सम्पूर्ण पर्वतपर ध्यानकर मोक्ष पधारे हैं। इस वर्तमान हुंडावसर्पिणी कालमें काल दोषसे ४ तीर्थकर अन्य स्थानोंसे मोक्ष गए हैं। सेठ माणिकचंदजी तीर्थक्षेत्र कमेटीके महामंत्री थे इसलिये इस पर्वतकी रक्षाका सम्पूर्ण बोझ इनके ऊपर आन पड़ा । अब रात्रिदिन सेठनी इस भारी चिन्तामें फंसे । आपने कमेटीकी तरफसे इस नोटिसकी नकल एक पत्र द्वारा सर्व पंचायतियों और सभाओं में भेनदीं । तथा यह भी लिखा कि बिचारवान भाई जो मिलनेको जावें अपने नाम भेजें । ठीक तारीख डाह्याभाई शिवलाल मैनेजर उपरैली कोठीसे मालूम कर लेवें । इसी बीच में कानपुर में बिम्बप्रतिष्ठा थी जिसमें भा० दि० जैन महासभाका नैमित्तिक अधिवेशन था । १५००० जैनी एकत्र थे । इस खबरको पाते ही महासभाने सभाद्वारा प्रस्ताव करके कि हम लोग पहाड़पर ऐसी बस्तीके बिलकुल विरुद्ध हैं, ता० २२ अपैल १९०७ को तार किया और यह भी लिखा कि दो मास समय बढ़ाया जावे । और भी पंचायतियोंसे तार व अर्जियें इसके विरुद्ध भेजी गई। यहांसे सेठनी ता० १ अप्रैलको चल अजमेर आए। राय बहादुर सेठ नेमीचंदजीने स्टेशन सेठजीका दौरा अ- पर भली प्रकार स्वागत किया । दिन भर जमेर, उदयपुर, यहां ठहरे । सुवर्णकी अयोध्या, कैलाश केशरीयाजी। आदि ऋषभदेवके पंचकल्याणककी रचना देखी। फिर सेठजीने शीतलप्रसादजीके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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