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________________ ७१४ ] अध्याय बारहवां । १२ को कमेटी करके प्रबन्ध सत्र समाधानी की। सेठ माणिकचन्दजीकी चलाई हुई बोर्डिंगकी पृथाने बहुतसे स्थानके भाईयोंको इस कामके लिये उत्तवर्धा दिगंबर जैन जित कर दिया। उन स्थानों में एक मध्य बोर्डिग। प्रान्तका वर्धा स्थान भी है। यहां जैनि योंके ७० वर हैं। आसपास भी जैनी हैं। यहांके भाई प्रति वर्ष रथोत्सव भादों पीछे करते हैं। वीर सं. २४ ३ ८ में इन्होंने बोर्डिग खोलनेका निश्चय करके बम्बईसे बोर्डिंगके जन्मदाता सेठ माणिकचन्दजीको निमंत्रित किया। नि रालसी सेठजी अपनी सुपुत्री मगनवाई और श्रीमती कंकुवाईके साथ वर्षा पधारे । आसोज वदी ५को रथोत्सवका समारम्भ होने पर दूसरे दिन ता० २ अक्टूबर १९१२ को सबेरे ८ बजे वोडिंग खुलनेका मुहूर्त हुआ। सरस्वती पूजन पं० हीरालाल नागपुरने कराई। फिर ममा हुई । तब सेठजी सभापति नियत हुए। जयकुमार देवीदास चौवरे वकीलने 'विद्यादान' पर मनोहर भाषण दिया। उसके प्रभाव व सेठजीके गुप्त प्रयत्नसे तुर्त १५०००) का चंदा हो गया,, जिसमें २१००) सेठ पन्नालाल, २०००) सेठ वकाराम वाइकाजी व १०००) सेठ मानमल पुलगांव इस तरह उदारचित्तोंने दान किया। सेठजीने बोर्डिग भाड़ेके मकानमें खोला तथा मकान बनवानेका भाईयोंने प्रण किया । ता० ३ को श्रीमती मगनबाई और कंकुबाईजीका ' स्त्रीशिक्षा' पर भाषण होकर १००) बम्बई श्राविकाश्रमके लिये एकत्र होगए । इस बोर्डिंगमें १ वर्षमें ही २४ की संख्या छात्रोंकी होगई, इनमें ५ बोर्डिगके खर्चसे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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