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महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ५६५ लालबाग में श्वेताम्बर जैनियोंकी एक विराट सभामें इस आज्ञाका पूर्ण विरोध किया गया । अहमदनगरकी सर्व देशीय जिला कॉन्फरेन्स में भी इसका विरोध हुआ । सेठजीने गुजराती पंचसे जानकर कि महाराज दुर्भगा १ लाख रुपया लगाकर पहाड़ शिखजोपर सैनिटेरियम बनाना चाहते हैं, महाराज दुर्भगाको १ अर्जी ता. ४ मईको लिखी, जिसका उत्तर ता. १० मईको आया कि यह बात बिलकुल असत्य है |
जैनियोंकी अति क्षुब्ध अवस्था व विरोधको सुनकर छोटे लाट बंगालने ता. १६ मई १९०८ को कलकत्ते में बाबू धन्नूलाल, परमेष्ठीदास, महाराज बहादुरसिंह, व राय मनीलाल, नाहर बहादुर से की और उसी दिन एक पत्र वी० एका लिन्स प्राइवेट सेक्रेटरीने राय मनीलालके नाम भेजा जिसकी नकल बम्बई सेटजी के पास आई। इसमें भी पहली आज्ञाको दृढ़ करते हुए इतना आश्वासन दिया गया कि जो कुछ प्रतिनिधियोंने खरीदने व पट्टे पर सदा के लिये लेनेको कहा है, उसके सम्बन्धमें कमिश्नर से रिपोर्ट करके कहा जायगा । जब तक जमींदार व कोर्ट ऑफ बाड्ससे जांच न हो मामला योंही रहे । यद्यपि इस पत्र से कुछ अधिक संतोष न हुआ पर इतना अवश्य प्रगट हुआ कि अभी बंगला बनना रोक दिया गया है तथा सम्पूर्ण पर्वतको पट्टेपर लेने का प्रयत्न होना चाहिये । सेठजीने कलकत्ते वालोंको लिखा कि खुलासा आज्ञा निकलना चाहिये कि बंगले न बने तथा पर्वतकी रक्षाका पूर्ण
सम्पूर्ण पर्वतको
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प्रयत्न किया जाय ।
बंगाल सर्कारका
दूसरा पत्र |
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