SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सन्तति लाभ | व शरीरकी सुंदरता देख अपनेको धन्य मानते हुए, पुत्रीजन्म सुनकर कुछ खेद हुआ था पर जब इस तो सारा खेद जाता रहा, इसकी चैतन्यता व आंखकी एक होनहार कन्या बतलाते थे । सेठ माणिकचंद को इस कन्याकी तरफ इतना मोह हुआ कि जैसा किसीको पुत्र पर भी नहीं होता । कई मास बाद सेठजी फिर नान्नेन आए और चतुरबाईको फुलकुमरी और मगनमती के साथ बम्बई ले आए। बम्बईके जौहरी बाजार में ही सेठ हीराचंद मयकुटुम्बके रहते थे । यद्यपि हीराचंदजी लकवेकी बीमारीसे दुःखी रहते थे पर घर में प्रेमचंद व फूलकुमरीको इधर उधर खेलते कूदते, हंसते, गिरते पड़ते और मगनमतीको भी चतुरबाईकी गोद में सेठ हीराचंदका स्वर्गवास । [ १८३ यद्यपि इनको पुत्रीको देखा ज्योति इसे जमीनपर घिसिलते हुए देखकर बहुत ही खुश हो जाते थे । सं० १० १९३७ के दशलक्षणी के दिन आ गए, बम्बई के श्रावक लोग धर्मध्यान में लीन हो गए, नरनारी सुन्दर वस्त्राभूषण पहन सवेरे से ही मंदिरजीमें जा पूजन पाठ पढ़ने सुनने में लग गए । भादो सुदी ९ की प्रातःकालका समय था, पुष्पांजलि व अष्टमी के व्रतवाले सवेरे से ही मंदिरजी आ गए थे, सेठ माणिकचंदजीने अष्टमीका उपवास किया था तथा यह प्रछाल पूजन नित्य ही करते थे सो उस दिन बड़े सवेरे से ही घर से मंदिरजी आ गए थे, ८ बजेके अनुमान पानाचंदजी भी मंदिर चले आए रूपाबाई, नवीबाई व चतुरवाई भी पुत्रपुत्रियोंके साथ मंदिरजी आ गई थी, नवलचंदजी आनेकी तय्यारीमें थे - स्नान करके कपड़े पहन रहे थे। उधर हीराचंदजी अब Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy