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अध्याय ग्यारहवाँ। पहिले बाबूके लिवासमें थे अब गेरुए रंगका मुरेठा, धोती, चादर व रूमाल लेकर ऐलकजीके प्लेटफार्म पर आकर बैठ गए।
. .. .... पौन घंटेमें केशलोंच समाप्त हुआ। सर्व लोग इस दृश्यसे वैराग्य में भर आए। इसी समय सेठ रावजी नानचंदने ९ लाख रु. के परिग्रहका नियम लिया । शोलापुरमें बड़ी भारी धर्म प्रभावना हुई । उसी दिन स्त्रियों की सभामें श्रीमती रखाबाई, कंकुवाई तथा मगनबाईजीके धर्मोपदेशसे ५००) का चंदा पाठशालाके लिये हुआ। शोलापुरमें यह पाठशाला श्रीमान् ऐलकजीके प्रतापसे ५००००) से अधिक फंडको रखनेवाली बहुत उत्तम प्रकारसे चल रही है। ऐलकजीने शोलापुर जिले में घूमकर पाठशालाके फंडके लिये द्रव्य एकत्र कराने में बहुत परिश्रम उठाया ।
शोलापुरके लोगोंको शीतलप्रसादजीके ऐसे यकायक परिवर्तनसे आश्चर्यके साथ आनंद भी हुआ।
अब शीतलप्रसादजी नियमित रूपसे सामायिक आदि क्रिया करने लगे, एक दफे शुद्ध भोजन लेकर संतुष्ट रहने लगे। ऐलकनीकी संगतिमें दो दिन टहरे । फिर आज्ञा लेकर बम्बई आए । __अब यह चौपाटी बंगलेमें न ठहर कर हीराबाग धर्मशालामें हरे । सेठ माणिकचंदनी सुनते ही धर्मशालामें आए। और देख कर कायदेसे वन्दना की, हाथ जोड़े और आंखोंमें आंसु लाकर कहने लगे कि आपने मुझे कुछ खबर नहीं की नहीं तो हम बड़ा उत्सव करते । आपने जो यह व्रत ग्रहण किया है सो मुझे बड़ा आनन्द है। आप अच्छी तरह इसे पालिये पर मुझे जो आप
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