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________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [६२३ पोंके दिनोंमें पूर्ण शीलवत ग्रहण किया । तब एक भाईने कहा कि आज इस नगरके हिन्दू मुसलमान सबने पशुवध करना बंद किया है तथा धीवरोंने ३ दिन तक मछली पकडना बंद रक्खी है। फिर शीतलप्रसादजीने त्यागीजीके व्याख्यानको दुहराते हुए दानार्थ प्रेरणा की तथा प्रगट किया कि सेठ हरीभाई देवकरण शोलापुर श्राविकाश्रमके लिये ७०००) प्रदान करते हैं उसी तरह यहांकी पाठशाला यदि ऐलकजीके नामसे हो जावे तो महाराजकी स्मृति रहे। इसमें आपलोग सहायता कर प्रबन्ध करें। इसका समर्थन कोल्हापुरके बुगटे महाशयने किया तथा किसीने हजार किसीने ५००) इस तरह बातकी बातमें १२०००)का चंदा दि० जैन पाठशालाके लिये होगया। एक अजैन मिलके मालिकने भी हर्षित हो ५००) रु० दिये । यह दानका प्रवाह रात्रि तक जारी रहा । इस अवसरपर सेठ नाथारंगजी गांधीने जो ५००००) का उपयोगी दान पहले कर चुके थे ९०००) और जैन बोर्डिंग शोलापुरमें अर्पण किये । तथा धाराशिवके शेठ नेमचंद वालचंदने प्राचीन जैन ग्रंथोंके जीर्णोद्धारके लिये ७०००) दान किये । ७५०) अमरावती जैन बोर्डिंगके लिये हुए व ३००) के करीब बोधेगांवके भाइयोंको दिये गए । दानकी अनुमोदना करके शीतलप्रसादजीने ऐलक महाराजके सामने अपना प्रतिज्ञापत्र शीतलप्रसादजी रक्खा तथा प्रार्थना की कि मैं ब्रह्मचर्य ब्रह्मचारी प्रतिमाके नियम धारना चाहता हूं। हुए। ऐलकजीने आज्ञा दी। तब शीतलप्रसादनी मंडपसे बाहर गए । इधर ऐलकजीने करीब ९॥ के केशलोंच शुरू किया। इसी बीचमें शीतलप्रसादजी, जो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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