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________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२०७ स्वामीकी बड़ी प्रतिमा पहाड़ पर है जिसपर लेख है उससे प्रगट है कि शाका १३५३में फाल्गुण सुदी १२ सोमवारको चंद्रवंसी भैरवेन्द्रके पुत्र श्री वीर पांड्य राजाने प्रतिष्ठा कराई । यहाँ चतुर्मुख मंदिरमें बड़ा शिलालेख है । यहाँसे लोग जहाजमें जानेको १८ मील गाडी पर चल मंगलोर बंदर पर आते है । यहाँ भी एक निन मंदिर है । २ घर जैन व १ उपाध्यायका है। यहाँसे जहान पर बैठके २ दिनमें बम्बई पहुँचते हैं। टिकट ११) लगता है। सेठ माणिकचंद संघसहित इसी मार्गसे यात्रा करके जहाज़ द्वारा बम्बई लौट आए। इन्होंने जैनबिद्रीके भंडारमें भी अच्छी रकम दी व रास्तेके मंदिरोंमें भी दान किया। ___ मूडबिद्रीके रत्नबिम्ब व धवलादि प्राचीन ग्रंथोंके दर्शन करते वक्त अच्छी रकम भेट धरी जिसे देखधवलादि ग्रन्थोंके कर वहाँके पंच और भट्टारकजी बहुत प्रसन्न उद्धारका विचार । हुए । सेठ माणिकचंदनीने दर्शन करते समय यह ज़रूर ध्यानमें लिया कि यह प्राचीन ग्रंथ जिन ताडपत्रों पर है वे बहुत जीर्ण हो गए हैं। वहाँके लोगोंको सेठजीने कहा कि इनकी दूसरी प्रति करानी चाहिये । तब वहाँके लोगोंने कहा कि ये तो इसी प्रकार बहुत दिनोंसे हैं, हम तो दर्शन करके व कराके कृतार्थ होते हैं, हम गृहस्थी तो वांच ही नहीं सक्ते, भट्टारकजी इस प्राचीन लिपिको पढ़ नहीं सक्ते, हां; जैनबिद्रीमें ब्रह्मसूरि शास्त्री है वे ही इसको पढ़मा जानते हैं। इस तरह बड़े आनन्दसे सेठजी यात्रा करके निर्विघ्न घर लौटे। रूपाबाईजीको इस यात्रासे बड़ा ही आनन्द हुआ । पुत्र प्रेमचंदजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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