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२०८] अध्याय सातवाँ । बड़े भावसे दर्शन करता था । चतुरमती फूलकुमरी और मगनमती कन्याओंको हरएक यात्रामें साथ रखती थी और दर्शन पूजन कराके. बहुत आनन्द मानती थी। पानाचंदनीको भी इस यात्रासे बहुत धर्म लाभ हुआ।
यात्रासे लोटकर सेठनीके चित्तमें उन प्राचीन ग्रंथोंके उद्धारकी बात जमी रही और यह विचार करके कि यह काम किस तरह सम्पादन हो। आपने शोलापुरके सेठ हीराचंद नेमचंदको याद किया क्योंकि इनकी विद्वता व बुद्धिमानी सेठ माणिकचंदके चित्तमें उल्लिखित हो गई थी। अपनी यात्राका समाचार सेठ हीराचंदको लिखा और प्रेरणा की कि आप स्वयं यात्रा करके उन ग्रन्थोंको देखें
और उनके उद्धारका उपाय करें। सेठ हीराचंदने पत्र पाकर उत्तर दिया कि हम अबके अर्थात् संवत् १९४१के जाड़े में श्रीमूलबिद्रीकी यात्राको यथा संभव अवश्य जावेंगे। अब सेठनीने प्रेमचंद और फुलकुमरीको ६ वर्षसे अधिक
जान इनके पढ़ानेको एक अच्छी गुजराती प्रेमचंद, फुलकुमरी ओर शालामें भेजा तथा घर पर भी एक अध्यापक मगनमतीको शिक्षा । नियत किया तथा धर्मकी शिक्षा मुख
जवानी इन बालकोंको माता रूपाबाई दिया करती थी व सेठ माणिकचंदजी भी देते थे, तथा मगनमतीको तो यह बहुत चाहते थे, २॥ वर्षकी उमरसे सेठजो इसको अपने साथ ___ नोट-गुजराती संवत दीवालीसे जब कि मारवाड़ी संवत चैत्र सुदी १ से शुरू होता है इससे मारवाडी सं० की अपेक्षा सं०
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