SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 637
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५७० ] - अध्याय ग्यारहवां । । प्रतिष्ठाके साथ अपनी कृतज्ञता प्रगट करनेको एक मानपत्र अर्पण किया । वास्तवमें धर्मात्मा स्त्री व पुरुष सर्वके अंत:करणको प्यारे लगते हैं। रांचीसे आते हुए सेठजी काशी आए । आपको तीर्थ भक्तिके स्या० महा वि०की साथ २ विद्यावृद्धिके कामों का भी हर समय प्रवन्धकारिणी ध्यान रहता था। ता. २० सितम्बरको मैदागिनी जैन मंदिरमें सभा हुई । बाबू देवसभामें सेठजी। ___ कुमारजीके वियोग पर शोक प्रगट करके बाबू जैनेंद्रकिशोर मंत्री और लक्ष्मीचंद्रजी उपमंत्री नियत हुए। सभासदोंकी संख्या फिरसे ठीक हुई । महाविद्यालय और स्याद्वाद पाठशालाके सम्बन्धका प्रस्ताव हुआ । देशी गणित और इंग्रेजी पढ़ानेका प्रस्ताव हुभा । अध्यापकोंका वेतन बढ़ाया गया। पंडित माणिकचंदने प्रमेयकमलमार्तड और पं० गणेशप्रसादने अष्ट सहस्रीमें परीक्षा पास की थी। ये दो ग्रंथ जैनियों में गंभीर न्याय विषयके हैं । इससे इनको विशेष पारितोषिक देनेका प्रस्ताव हुआ। यहांसे सेठजी ता० २२ सितम्बरको प्रयाग आए । आप अलाहबादमें बोर्डिङ्ग स्थापित करनेके लिये अलाहबादमें जैन बो- पत्रव्यवहार तो कर ही रहे थे । बाबू डिङ्गकी कोशिश। शिवचरणलाल रईसको तार कर दिया था। स्टेशनपर उक्त बाबू साहब कई भाइयोंको लेकर उपस्थित हुए । अति सन्मानसे अपने यहांकी गाड़ियोंपर ले जाकर अपने मकानमें ही ठहराया और बहुत खातिर की। ता० २२ की रात्रिको सेठजीके सन्मानार्थ बाबू साहबके मकानपर स्टेशन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy