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________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ५६९ बड़े कमरे में लेटे थे, शरीर सुख गया था, अपने पास कुटुम्बीको बैठने नहीं देते थे, धर्मात्मा ब्र० नेमीसागर आदिको बिठाए रखकर धर्मभावकी वृद्धिमें लीन थे । प्रकरण । छोटे लाट सर फ्रेजरने शिखरजी सम्बन्धी वात करनेको रांची में जैन प्रतिनिधियोंको बुलाया उस रांची में शिखरजी समय बम्बई से सेठ माणिकचंदजी शीतलप्रसादजीको लेकर रांची गए । ता. १६ सितम्बर १९०८ को वार्तालाप हुआ। कुल पर्वतको पट्टापर देने की बातें हुई। यहां राजा भी बुलाया गया था। लाट साहबने २ लाख रु० नकद व १५ हजार रु० वार्षिक मांगे । जैनियोंने अपनी सामर्थ्य न समझकर इनकार किया - मामला तय न होकर यही रह गया । सेठ माणिकचंदकी भावज सेठ प्रेमचंद मोतीचंदकी माता रूपाबाई बड़ी ही धर्मात्मा थीं। अपने द्रव्यका माता रूपावाईको निरन्तर सदुपयोग विचारा करती थीं। अहमानपत्र । मदावाद बोर्डिंगके चैत्यालय के लिये आपने ४०००) लगाकर एक मनोहर चांदीका समवशरण बनवाया था । उसे स्थापित करानेके लिये आप मिती ज्येष्ठ सुदी २ को अहमदाबाद गई थीं । वहां विधि से पूजन कराई तथा यह ठहराव किया कि प्रति भादों सुदी ५ को श्री सम्मेद - शिखरजीकी पूजा ठाठवाटसे हुआ करे जिसके खर्चको एक रकम अलग कर दी कि इसके व्याजसे हर वर्ष पूजा हो । उस समय बोर्डिङ्गके कार्यकर्ता और विद्यार्थियोंने श्रीमती बाईजीको अति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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