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________________ ५६८ ] अध्याय ग्यारहा। समाकी व जैन जातिकी बहुत कुछ सेवा की थी। स्थद्वाद पाठशाला काशीको अपनी धर्मशालामें आश्रय दिया व जीवन पर्यत उसकी रक्षा की। दक्षिणयात्रामें ग्रंथोंके भंडार ठीक कराए। सरस्वती भवन खोलनेकी फिक्रमें थे, किन्तु यह नियम ले लिया था कि जब तक भवन न खोलूं तब तक ब्रह्मचर्य पालूंगा। ऐसे होनहार धनाढ्य और एफ० ए० तक संस्कृत इंग्रेजी पढ़े हुए धर्मप्रेमी देवकुमारका स्वर्गारोहण जानकर सेठजी शोकसागरमें डूब गए। बाबू साहबकी सेठ माणिकचंदमें अनन्य भक्ति थी। अन्तमें वे कह गए कि " दानवीर सेठ माणिकचंदजी आदिसे मेरा धर्म स्नेह पूर्वक जुहारु कहना और उनसे सरस्वती भंडार शीघ्र स्थापित करनेकी प्रार्थना करना।" पीछे जब सेठजीने सुना कि वे अपने एक वसीयतनामें में १००००) नकद व १ गांव ६०००) वार्षिककी लागतका धर्म कार्योंके लिये दे गए हैं, तब आपको कुछ संतोष हुआ। इस दानकी विगत जैनमित्र अंक २१ ता० २८ आगस्त १९०८ में छपी है। इसमें १५००) वार्षिक सरस्वती भवन, ८००) औषधालय शिखर जी और ५००) छात्रवृत्ति धर्मशिक्षार्थ भी हैं। ता० ११ अगस्तको सेठ माणिकचंदजीके सभापतित्वमें सभा ___ होकर बाबू देवकुमारजीकी मृत्युपर शोक बम्बईमें सभा। प्रगट किया गया। बाबू शीतलप्रसादजीने _मरणके थोड़े दिन पहलेकी अपनी मुलाकातका हाल वर्णन किया । जब वह कलकत्ते गए थे कि बाबुसाहब एकान्त में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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