SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संयोग और बियोग । " [ २७३ जेटलो खर्च थाय तेटलो आपत्राने तेओए कबुल कर्युं छे. अमेरिकाना केटलाक वर्तमान पत्रोए जैनधर्म विषे पोताना उत्तम मतो जाहेर कर्या छे. त्यानां ' धी आई नामना एक पत्रमां गई ता० २३ मी मार्चना अंकमां एवं लखाण करवामां आव्युं छे के भाषणनो विषय जैनधर्म अनं ते धर्म विषे मी० गांधी अहींना मेळावडांमां पोताना लोको तरफथी भाषण करवाने आव्या हता. जुदा जुदा देशोमांथी आवेला अनेक विद्वान प्रतिनिधीओए मेळावडामा अने ते खलास या बाद पूर्व देशना धर्मो विषे जे भाषणो कर्यो हतां, ते तमाम धर्मो करतां बुद्धिवान अमेरिकन लोकोनुं वलण जैनधर्म तरफ वधारे सारीरिते युं छे " यह पत्र गुजराती में है तो भी हमारे पाठक समझ गए होंगें । इससे यह झलकता है कि वीरचंदने अपने लगातार व्याख्यानोंका ऐसा असर जमाया कि इनके पास ५० के करीब स्त्री पुरुष जैन तत्वज्ञान सीखने के लिये आने लगे तथा पादरियोंने गिरजाघर में भाषण देनेकी इजाजत देदी । एक स्त्री और उसके पतिने चौथा वन लिया तथा ४ जैन बालक पूर्ण धर्म विद्या पढ़े इसके कुल खर्चको उठाना मंजूर किया। दूसरे किसी दिन सेठजीने एक चिकागोकी मेमकी चिट्ठीका तर्जुमा एक पत्र में पढ़ा जिसमें इंग्रेजी भी छपा था । वह पत्र यह है "To the Editor of the Pioneer. The Jain Community was very' ably represented by Mr. Veerchand Raghaojee Gandhee B. A. of Bombay, who made an exceedingly १८ Jain Education International " For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy