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________________ ७९२ ] अध्याय बारहवां । चालणार ? आपण सूज्ञच आहां. त्यांच्या मरणाने जैन समाजाची किती नुकसानी झाली आहे हे लक्षात आणून ह्यांतल्या ह्यांत समाधान पानाल अशी आशा आहे. जैनसमाजाचा एक आधार व चालक नाहीसा झाला. आज जैनसमाज लंगडा-पंग झाला असे म्हटले तरी चालेल. आपले बंधु चि. बाबूस दीर्घकाल आयुरारोग्य प्राप्त होवो व आपल्या वडिलांचा कित्ता बरोबर गिरवो अशी श्रीजिनेश्वरचरणी प्रार्थना करून हे दुःखवट्यांचे पत्र संपवितों. कळावे ही विनंती ता० १९-७-१४. आपला एक बंधुभरमप्पा पदमप्पा पाटील, होसूर । मान्यवर महोदयजी! यह हृदयविदारक दुःसमाचार 'हकर अत्यन्त शोक हुआ है कि जैन जातिके चिरस्थाई सभापति जैनकुलभूषण दानवीर सेठ माणिकचन्द्रजी जे. पी. बम्बईका अकस्मात् स्वर्गवास हो गया है। हाय! बड़ा अनर्थ हुआ। यह समाचार मैंने सभामें सुनाया। सभामें जितने जन उपस्थित थे सब हीके चित्त शोकातुर होने लगे और इस असार संसारकी छिन भंगुर अवस्थापर विचार करने लगे और कहने लगे कि हाय काल! तु बड़ा अन्यायी है। योग्यायोग्यका रंच मात्र भी विचार नहीं करता । अपनी गतिमें अरोक गमन करता रहता है। (विचार पूर्वक) वस्तुका स्वरूप ही ऐसा है । जिसका संयोग है उसका वियोग अवश्य होता है। यथा गाथाज किचिण उप्पण्णे तस्स विणासो हवई णियमेण । परिणामसरूवेण वि किंधिविसायं अत्थि ॥ ऐसा विचार कर धैर्यका अवलंबन करना उचित है। इस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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