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________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ७९१ उन्नति पर था उसी तरह उनके उदार और माननीय कुटुम्बी जनोंका भी पूरा २ ध्यान इस पवित्र जिन धर्म और समाजकी उन्नतिमें कटिवद्ध रहेगा । " आपका हितकांक्षीगोपालदास बरैया, सभापति । श्रीमती मगनबाईजी, श्री० सेठ जै० माणिकचंदजीका स्वर्गवास सुन सारी समाज में शोकरूपी मेघाच्छादित हो गया । हृदय कम्प होकर वेदना अनुभव होने लगा । हा ! समाजका इन्दु कालरूपी केतुसे दब गया | इस समय हमारे यहां के सर्व नरनारी शोकातुर हैं - आपके प्रति तथा मातुश्री आदि सर्व कुटुम्बियों प्रति समवेदना प्रकट करते हैं । अन्तमें यह मनोकामना है कि पूज्य सेठजीके पवित्र आत्माको शान्ति मिले और आप लोग भी बारह भावना भावें । दुःख हृदया - चंदाबाई, आरा । श्रीमती पंडिता मगनवाईजी, मुंबई. जैन समाजाचे पिते - सूत्रधार - आधारस्तंभ - एक अमूल्य रत्न - असे आपले वडील व आमचे पितृसदृश्य दा० जै० कु० शेट माणिकचंद यांच्या आकस्मिक मरणाची वार्त्ता काल रोजी येथे पसरली. मी हल्लीं थोडासा शीक ( अमांशाच्या विकाराने ) असल्या मुळे घरींच असतो. कालरोजी आमच्या एका मित्राने सदर बातमी मला घरी येऊन सांग - तांच एकदम विद्युत्पात झाल्या सारखे वाटलें ! फारच दु:ख झालें. माझ्यावर तर त्यांची फारच प्रीती. उपाय नाहीं. कर्मेच्छेपुढे कोणाचें काय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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