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समाजकी सच्ची सवा । [३१७ मिती आश्विन वदी १४को बाईने एक पुत्ररत्नको उत्पन्न किया । पुत्रका लाभ देख पानाचंदनीको और विषेश कर माणिकचंदनीको बहुत ही हर्ष हुआ क्योंकि अब तक इन दोनोंके कोई भी पुत्र जीवित नहीं था और बाज़ार में ये मान्य गिने जाते थे। सेठ माणिकचंदनीने खूब धूमधामसे मंदिरजीमें पूजन कराई, दान बांटा, वस्त्रादि दिये, गाना बनाना हुआ । बड़े भाईके चित्त प्रसन्नताके अर्थ इस जन्मोत्सवको इसतरह किया कि जिससे इसकी बहुत प्रसिद्धि हुई व माता रुकमणीको बहुत संतोष हुआ। अपनी ५१ वर्षकी आयुमें पुत्रलाभ होनेसे सेठ पानाचंदको अकथनीय आनन्द हुआ। सेठजीने इसकी रक्षाका पूरा २ यत्न किया । मिती मार्गशीर्ष वदी १० संवत १९५६ को सेट माणिकचं
दनीने बम्बई सभाकी प्र० कमीटि बुलाई । बम्बई सभामें शिखरजी ८ सभासद एकत्र हुए । सभापति सेठ व जैनमित्र । हरमुखराय अमोलकचंद किये गये, उपमंत्री
पं८ गोपालदासनीने भारतवर्षीय दि० जैन महासभाका वह प्रस्ताव नं० ३ जो उसने ता०२४-१०-१८९० को पास किया था, पेश किया। वह प्रस्ताव यह था ।
" महासभा प्रस्ताव करती है कि श्री सम्मेद शिखरजीके झगड़ेके विषयमें जो सबकमेटी मेले हाथरसमें स्थापित हुई थी वह अब तोड़ दी जाय और उसका चार्ज बम्बई सभाके सुपुर्द हो। इस कामके खजाञ्ची सेठ माणिकचंद पानाचंदजी जौहरी, बम्बई निवासी नियत किये जावें । जिन भाइयोंके पास इस विषय सम्बन्धी द्रव्य हो वह उक्त सेठ साहबके पास मय हिसाब किताबके भेज देवें और आगेको भी उन्हींके पास भेजते रहें (एक
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