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अध्याय ग्यारहवां । शिखरजी जाओ अने पहाड़नो झगडो मटाहो" यह धीरजके शब्द सुनकर सेठजीने जाने का निश्चय किया। सेठजी शीतलप्रसादनी व मैनेजर कमेटीको लेकर शिखरजी आए और यहां आनेवालोंके आरामका प्रबन्ध कराने लगे । सेठ मेवारामजी भी कई दिन पहलेसे आगए थे और खास २ लोगोंको अर्जन्ट तार देकर बुलाया था। ता० २५ से २७ तक २५०० दि० जैनी भिन्न २ प्रान्तोंके आगए थे । बंगालसे बा. धन्नूलाल अटार्नी, सेठ परमेष्टीदास आदि, पंजाबसे लाला ईश्वरीप्रसाद, लाला रामलाल फीरोजपुर आदि, युक्तप्रान्तसे बा० जुगमन्धरदास सहायक महामंत्री महासभा, रायबहादुर नत्थीलाल खुरजा आदि, मालवासे सेठ हुकमचंद, अमोलकचंद आदि, राजपुतानासे रायबहादुर सेठ नेमीचंद व रा० ब० घमंडीलाल आदि, बम्बईसे सेठजी व चौगले बी. ए. एलएल. बी. वकील बेलगाम आदि, मध्य प्रदेशसे सेठ पूरणसाह, सुखलालमल, नेमिलाल आदि, दक्षिणसे अनन्त राजय्या मैमुर, भट्टारक लक्ष्मीसेन, राजा ज्ञानचंदजी आदि । बम्बईसे सेठजी शिखरजीके लिये रवाना हुए थे कि एक दिन
बाद ही मिती श्रावण वदी १ सं० १९६३ सेठ चुन्नीलाल झवेर- (गुज०) तारीख २४ अगस्तको प्रातःकाल चंदका स्वर्गवास । श्रीजिनेन्द्रका व शिखरनीका ध्यान करते
सेठ चुन्नीलालका आत्मा इस क्षणिक देहको छोड़ स्वर्गधाम पधारा । आपने मरते समय ५०००) धर्मादेके निकाले।
यह बड़े भारी तीर्थभक्त थे। इन्होंने तीर्थोके उद्धारके लिये बहुत कुछ परिश्रम उठाया था। श्री शिखरजी और पावापुरी
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