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महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५२३. हो गया जिससे दुःखित हो वे सर्वको छोड़ सीधे बम्बई. आए और बीमार हो गए। __ताः १ अगस्तको फिर पहाड़पर कमिश्नर साहब आए।
उस वक्त भी तीर्थभक्त बाबू धन्नूलाल अटार्नी कमिश्नरसे मुलाकात । सेठ परमेष्टीदास व बम्बईके लोग आदि.
मिले । सब लोगोंने इन्कार किया कि हम पर्वतकी पवित्रताकी कुछ भी हानि नहीं सहन कर सक्ते ।
बम्बईके सेठ पदमचंद व प्रभुदयालजी भी बीमार होकर लोटे व कई मासतक बीमार रहे । चुन्नीलाल सुप० का मगज फिर गया । वे बहुत दिनों तक मेड हाउसमें रहे । जब २ जीवोंके तीत्र कर्मका उदय हो आता है तब तक तप, ध्यान, पूना कैसा भी धर्म कार्य करे उस उदयजनित कर्मका फल भोगना ही पड़ता है। बड़े२ मुनियोंको भी तीव्र कर्मोदयसे उपसर्ग सहना पड़ा है । सेठजी
चुन्नीलालको बीमार देख बहुत दुःखित हुए तथा योग्यरीतिसे दवाई में लग गए । इतनेमें सेठजीको डि. क. हजारीबागसे सूचना मिली कि लाटसाहब ता० २८-२९-३० अगस्तको पहाड़ पर आवेगे । सेठनीने ४ अगस्तको सर्व जैनियोंको प्रतिनिधि भेजनेके लिये जैनमित्र ता. ११ अगस्त द्वारा सूचना की।
सेठ माणिकचंदजीको भी ता० २८ के लिये कई दिन पहलेसे जाना था पर सेठ युन्नीलालको ऐसी बीमारीकी दशामें छोड़कर जाना आपने ठीक नहीं समझा और चुन्नीलालजीसे अपने न जानेकी बात कही तब साहसी तीर्थभक्त चुन्नीलालने कहा-"मामा, मारी फिकर करता ना, तमे
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