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महती जातिसेवा तृतीय भाग [६४१ हैं न कि जल्प और वितंडाबादके लिये । संस्कृत विद्याके बिना धार्मिक विद्यामें प्रवेश नहीं हो सक्ता । राजभाषा भी संस्कृतवालोंको सीखना चाहिये । सेठ माणिकचंदनीने सभापतिको धन्यवाद देते हुए कहा कि “ जैसे हिन्दू काले नमें स्वार्थ त्यागी जीवन अर्पण करनेवाले विद्वान् काम करते हैं ऐसे हमको मिलें तो बहुत उत्तम काम हो । हमारे भाईयोंको ५० वर्ष तक खूब परिश्रम करके धनोत्पत्ति करके फिर शेष जीवन परोपकार में बिताना चाहिये । " सेठजीने १०१) दिये । बाबू छेदीलालने भी १०१) दिये। सब मिलके ५००) की उपज हुई।
यहांसे चल ता० २८ को श्री अयोध्याजी आए । जहां इस चतुर्थ कालमें श्री ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ और अनन्तनाथ स्वामीका जन्म हुआ था। यहां पांचों स्थानोंके दर्शन किये । इस क्षेत्रके सम्बन्ध में ऐसी मान्यता है कि सदा ही भरतक्षेत्रके सर्व ही तीर्थंकर यहां जन्मते और श्री सम्मेद शिखरजीसे मोक्ष प्राप्त करते हैं । हुंडावसर्पिणी कालके दोषसे गत चौथे कालमें फेरफार हुआ । यहां केवल एक पुनारी था । मुनीम नहीं था न प्रबन्धकारिणी कमेटी न रसीदवही न वहीखाते थे। सेठजीने यहां बम्बईसे एक घड़ी भेजनेको कहा ।
यहांसे रात्रिको चल सबेरे ता० २३ को लखनऊ आए। स्टेशनपर मुख्य जैनी भाईयोंने भले प्रकार स्वागत किया। यहां दो शास्त्र सभा व दो उपदेशक सभा हुई । सेठजीको निम्नलिखित मानपत्र अर्पण हुआ
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