SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 715
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४२ ] अध्याय बारहवां । नकल मानपत्र (लखनऊ) श्रीमहावीराय नमः। दोहा। "शीतल' देखत शिथिल भये, सर्व कर्मके फन्द । भाग हमारे उदय भये, आये माणिकचन्द ॥ १ ॥ इस समय हम अपने परम पूज्य श्री वीतराग परमेश्वरको नमस्कार करते हुए, अङ्ग में फूले नहीं समाते हैं कि आज कैमा सुअवसर है, कि जिस महानुभावकी कीर्ति हम सब बहुत कालसे श्रवण करके अपने कर्णो को तृप्त किया करते थे, आज वही शानिा छवि, अपने चन्द्रसम मुख कमलके दर्शन देकर हमारी नेत्ररूपी कमलिनीको प्रफुल्लिन कर रही है व यों कहिये कि जिस प्रकाशमान चन्द्रमाके देखनेके वास्ते हमारे चितचकोर बहुत कालसे तृषित थे, आज वही शुभ चन्द्र स्वच्छ स्फटिक शोभाविरनिरनि श्री श्रेष्ठि "माणिकचंद" अपने पूर्ण रूपसे दर्शन देकर अपनी सौम्य चित्तहारी दृष्टिरूपी किरणोंसे हमारे हृदयको शान्ति और आनन्द उत्पन्न कर रहे हैं । महाशय ! हम आपकी प्रशंसा (स्तुति) करनेके लिये असमर्थ हैं क्योंकि सम्पूर्ण भारतवर्षमें जैन समाजमें ऐसा कौन जन होगा जिसके मुखसे आपका सुयश, कीर्ति, गुणगान व नाम न लिया गया हो ! जैन समाज व हम सकल लखनऊ निवासी श्रीमान्के परम आभारी हैं, कि आपने अपने सुकृत्यसे सञ्चित किये हुए धनको अपनी मान बड़ाईके लिये व्यर्थ व्यय न कर जैन धर्म व जैन जानिक, परोपकारक मार्गमें लगाया। आपने विद्यावृद्धिके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy