SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 909
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८१६ ] अध्याय तेरहवां । गजगति गेले चाल हती जस, वाणी अमीरस पुर; वदन सरोवरथी फूल खरतां, बोलता बोल मधुर - यो गरिब कुटुंबमां सुरत गामे जन्म्या हता महाभाग्य; पडती ने चढ़ती दीठी आभवमां, धिरज न करी त्याग - गये। भाग्य उदयथी वधी संपत्ति, बध्यो क्षमा पर भाव सज्जन संगथी हर्ष शोकमां, रह्यो सदा समभाव - गयो १० राज्य प्रजानो मित्र शुभेच्छक, देश स्वजातिनो मित्र; क्वां गयो जैन जवाहीरमाथी, हीरो अमुल्य पवित्र - गयो ११ अकस्मात् ए पुरुषना मरणे, वरत्यो बधे हा-हा - कार; स्वजन ने परजन रुदन करे बहु, क्यों गयो दीनदातार - गयो १२ ललीत छंद. कर्यो, गरिन्नो खरो आशरो हर्यो; " अरर दैव ते कोप शो सकल संघनो मित्र क्यों गयो, अरर चंद तुं चालतो थयो १ विकट आसमे क्या गयो अरे, परम मित्र तुं प्राण संहरे; धरम धामनां काम क्यों थशे, तीरथ वाळवा कोण दोडशे. २ विरह ताहरो ना खमायरे, तुज वियोगथी खेद थायरे; पलक एकमां प्राण जायरे, धरम ध्यानमा मौन थायरे. ३ अमर आतमा कृषथी शम्यो, शरीर धर्मयी भिन्नय रम्यो; नियम कालनो ना कदी फरे, जनमनार ते प्राणीयो मरे. ४ सफल जन्म तो तेहनो खरो, सुकृत पंथमां जेह संचर्यो; जगतमा रह्यो जीवतो खरे, विजय वावटो विश्वमां फरे. ९ H. V. Jain Education International ሪ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy