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________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२४१ सेठ माणिकचंदनी जब इसतरह लक्ष्मीका उपयोग कर रहे थे तब शोलापुरके दानी सेठोंका मन भी दानमें शोलापुरमें चतुर्विध उत्सुक हो रहा था। उनके मनको उपयोगी दानशाला। कार्योकी ओर आकर्षित करनेवाले सेठ हीराचंद नेमचंद बड़े प्रवीण थे । एक दफे आपने उपदेश दिया कि लक्ष्मीका उपयोग चार प्रकारके दानसे करना चाहिये । गरीबोंको, अनाथ बालक व विधवाओंको अन्न देना आहारदान है, रोगियोंकी आर्ति मिटानेके लिये पवित्र देशी औषधि देना औषधि दान है, मनुष्य पशु आदि संकट में पड़ते हुए प्राणियोंका भय मेट कर रक्षा करना, पिंजरापोलमें मदद देना सो अभयदान है, धार्मिक व लौकिक विद्याकी वृद्धि करने में सहायता करना सो विद्यादान है। इससे धनपात्रों को कुछ अलग धन एकत्र कर उसके व्याजका उपयोग चारों दानों में सदा हुआ करे ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये। शोलापुरकी मंडलीके ध्यानमें यह बात आगई और ताः १२ नवम्बर सन् १८९१ को नीचे प्रमाणे रु. ३८१ १६) का फंड करके उसका व्याज 1) सैकड़ा उत्पन्न करके चारों दानों में खर्च हो ऐमा प्रस्ताव होकर चतुर्विध दानशालाका कार्य प्रारंभ होगया। फल्टनके एक जैन वैद्य बलवंत नेमाजीको वैद्य नियत किया गया। यह कार्य अबतक जारी है और इस फंडके निमित्तसे बहुतसे गरीब छात्र शोलापुर पाठशालामें पढ़ते हुए भोजन पाते रहे हैं। पशुशालाको मदत होती रही है। विद्यादानार्थ पाठशालाको मदत दी गई है। उसका रुपया मुख्य२ सेठोंके यहां जमा है । इसकी प्रबन्धार्थ एक कमेटी है पर उसका ट्रष्ट रजिष्टरी अक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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